दाम्पत्य जीवन में
मंगल – शुक्र एवं कामवासना
परिवार को एक
गाडी माना गया है, और उस गाडी की आवश्कताएं जैसे ईंधन, पानी की व्यवस्था को पति
मान सकते है. तो परिवार को संचालित और संपादित करने के लिए एक संयोजक की भी
आवश्कता रहती है. अगर उस गाडी का चालक गाडी के साथ असावधानी बरते तो गाडी को क्षति
पहुँचती है, अर्थात परिवार को संकट का सामना करना पड़ सकता है. कहने का मतलब ये है
कि बनाना आसान होता है किन्तु उसे चलाना बहुत मुस्किल होता है. आप चाहे कितने भी
पैसे कमाते हो लेकिन उस पैसे का उपयोग कैसे करते हो वो ज्यादा जरूरी होता है.
इसीलिए एक दाम्पत्य जीवन में पति से ज्यादा पत्नी को महत्व दिया जाता है. देखा जाए
तो पत्नी ही परिवार की असली कर्ता धर्ता होती है. उसी की बुद्धि और विवेक से एक
परिवार में खुशियाँ और सुख का वास होता है.
तो एक परिवार में
पति पत्नी के बीच एक सामंजस्य होना बहुत जरूरी है तभी एक परिवार पूर्ण परिवार कहलाता
है. और पति पत्नी के बीच के सामंजस्य के लिए दम्पति के बीच प्रेम का होना भी बहुत
जरूरी है. आपने देखा होगा के ध्वनी की प्रतिक्रिया प्रतिध्वनी होती है, बिम्ब का
प्रतिबिम्ब होता है उसी प्रकार अगर आप प्रेम की प्रतिक्रिया प्रेम ही होता है. पति
पत्नी के बीच अगर प्रेम हो तो वे एक दुसरे के साथ साथ अपने परिवार का जीवन भी
प्रेम से भर देते है. किन्तु उनके बीच की दुरी या कलह घर की शांति को भंग कर उसे
अशांति में बदल देता है. ज्योतिष शास्त्र में भी दाम्पत्य जीवन के बीच के तनाव के
कुछ कारण बताये गये है जिनकी वजह से एक दम्पति को बहुत सी कठिनाइयों को उठाना पड़ता
है और उनके जीवन की स्थिरता खो सकती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वे कारण
निम्नलिखित है. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
दाम्पत्य जीवन में मंगल |
अगर दाम्पत्य
जीवन में शुक्र और मंगल का संबंध है और युति का परिणाम भी अच्छा नही है तो ज्योतिष
शास्त्र अनुसार इससे दम्पति के शारीरिक संबंध, काम शक्ति, कामवेश, काम सुख के लिए
जातक का आचरण बदल जाता है और वो निंदनीय या लज्जापूर्ण हो जाता है, जिससे कुप्रभाव
पड़ते है. ज्योतिष शास्त्र में देखने में आया है कि अगर व्यक्ति के सप्तम भाव में
मंगल का होना उच्च राशि, स्वराशिस्थ है, जो पाप ग्रह से दृष्ट है, ऐसी स्थिति में
व्यक्ति का कामांध होना निश्चित है. इसीलिए जातक को शुक्र मंगल की युति, दृष्टी
संबंध, समसप्तक, चतुर्थ और दशम संबंध, नक्षत्र संबंध, नवांश संबंध आदि को अच्छी
तरह और गंभीरता से देखना चाहिए.
For Happy Married Life |
अगर जातक की
कुंडली में शुक्र और मंगल केंद्र में है, या शुक्र मंगल की राशि में हो और नवांश
में हो, या फिर मंगल से जुडा हुआ हो या सिर्फ दृष्टी रखे हुए हो, ऐसी स्थिति में
भी जातक कामांध हो सकता है और अपने काम को शांत करने के लिए अप्राकृतिक तरीके भी
अपना सकता है. इसलिए जब भी किसी लड़के और
लड़की के विवाह से पूर्व उनकी कुंडली देखी जाती है तो कुंडली में इन सब बातो को भी
ध्यान से देख लेना चाहिए. क्योकि कुंडली में कुछ ऐसी बाते होती है जिनका पता लगने
पर उनको ना होने दिए जाना ही उचित होता है जैसेकि अगर इन दोनों की कुंडली में से
एक की कुंडली में भी मंगल जब शनि से संबंध बनाता है, खासकर सप्तम भाव में तब दोनों
में से एक की म्रत्यु सम्भोग से ही होती है और संदेहजनक स्थिति में होती है.
मांगलिक होना या गुणों का मिल जाना ही पर्याप्त नही होता बल्कि कुंडली मिलते वक़्त
इन बातो को भी ध्यान में रख कर निर्णय लेना ज्यादा जरूरी होता है. इसके लिए अगर
त्रिशांश कुंडली का भी अध्ययन किया जाये तो ओर भी अधिक लाभ मिलेगा. इस कुंडली में
लड़के और लड़की दोनों के आचरण को देखा जाता है, जिसका निर्धारण लगन या चन्द्रमा से
किया जाता है अगर लग्न जातक है तो चंद्रमा उसकी सोच है.
दाम्पत्य जीवन
में मंगल का प्रभाव बहुत महत्व रखता है, उसी प्रकार से हर ग्रह का, हर भाव का कहीं
न कहीं किसी न किसी रूप में प्रभाव रहता ही है. अगर आपको संतान प्राप्ति में बाधा,
शिक्षा प्राप्ति में बाधा, चोट, ऋण कर्ज, रोग व्याधियां खून खराबा, हत्या, मारकाट,
जेल जाना आदि किसी भी तरह की परेशानी के बारे में जानना हो तो आप अपने भावो और
ग्रहों की दशा से उससे सम्बंधित जानकारियों को प्राप्त कर सकते हो और साथ ही आप
उनसे छुटकारे के उपायों को भी अपना कर इन परेशानियों से होने वाले बुरे प्रभावों
से मुक्त हो सकते हो.
Dampatya Jivan Mein Magal |
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