शास्त्रों के अनुसार शंख को
पूजा पद्धति में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. शंख देवी देवता के स्वरूप को
दर्शाता है, साथ ही ये भी माना जाता है कि शंख सूर्य और चन्द्रमा का स्वरूप, उनका
देवस्वरूप माना जाता है. इसके मध्य भाग
में वरुण देव, पीछे के भाग में ब्रह्मा और आगे के हिस्से में गंगा और सरस्वती जी
निवास करती है. शंख का इस्तेमाल शिवलिंग, कृष्ण और लक्ष्मी विग्रह पर जल अर्पित
करने के लिए भी किया जाता है, इससे सभी देवता
प्रसन्न रहते है. शंख ऐश्वर्य और समृधि का प्रतीक है. शंख पूजन और ध्यान, आदमी को
धनी बनता है, व्यवसाय में सफलता दिलाता है, साथ ही अगर आप शंख में जल भर कर उसे
अपने नेत्र में डाले तो आपके नेत्र सम्बन्धी रोग भी दूर होते है, इसके अलावा अगर
आप रात को शंख में जल भर कर रखे और उस जल को फिर सुबह अपने में छिडके, आपके घर में
सुख और शांति बनी रहती है और आपको किसी बाधा और परेशानी का सामना नही करना पड़ता.
इसके अलावा पौराणिक कथाओ
में और ग्रंथो में लिखा है कि सृष्टी से ही आत्मा, आत्मा से ही प्रकाश, प्रकाश से
ही आकाश, आकाश से वायु, वायु से ही अग्नि, अग्नि से ही जल और जल से ही पृथ्वी का
निर्माण और उत्पति हुई है और इन्ही तत्वों से मिल कर ही शंख का निर्माण हुआ है.
माना जाता है कि शंख की ध्वनी बहुत हे पवित्र होती है और इसकी ध्वनी से रोगों,
राक्षसों और पिशाचो से भी रक्षा मिलती है. इस पर एक मुहावरा भी बना है कि “ शंख
बाजे बालाएं भागे ”. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
Importance of Conch Shell on Worship Place Temple |
पूजा स्थल पर शंख रखने की
परम्परा :
सनातन धर्म के प्रतीक शंख
को हर धर्म शास्त्र में जगह मिली है और इसका अपना ही अलग महत्व है. इसके वादन से
सभी भुत – प्रेत, अज्ञान, रोग, दुराचार, पाप, दूषित विचार और गरीबी का नाश होता
है. प्राचीन काल से ही शंख ने अपना महत्व बनाया हुआ है. महाभारत में भगवान श्री
कृष्ण ने कई बार अपना पांचजन्य शंख बजाय था और यदि हम आज के युग की बात करे तो शंख
का महत्व वैज्ञानिक दृष्टी से भी देखा जा सकता है. क्योकि शंख के बजाने से हमारे
फेफड़ो का व्यायाम होता है, श्वास सम्बन्धी सारे रोग से लड़ने की शक्ति मिलती है.
पूजा के समय पर आप शंख में जल भर कर रखे और फिर उसको पूजा स्थल पर छिड़क दे इसमें
वातावरण से सारे कीटाणुओं का नाश करने अदभुत शक्ति होती है. साथ ही शंख में रखा
पानी पीने से स्वास्थ्य के लिए और हमारी हड्डियों के लिए भी बहुत लाभ दायक है.
वैज्ञानिक दृष्टी से देखे तो शंख में कैल्शियम, फोस्पोरोउस और गंधक के गुण होते है
जो उसमे रखे हुए जल में घुल मिल जाते है और आपको लाभ प्राप्त होता है.
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Pooja ke Sthaan par Shankh ka Mahattav |
शंखो के प्रकार :
शंख मुख्यतः 2 प्रकार के
होते है 1.) वामावर्त शंख और 2.) दक्षिणावर्त शंख
वामावर्त शंख : इस शंख को
केवल पूजा के लिए ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए क्योकि माना जाता है कि इस शंख में
भगवान विष्णु जी वास करते है और ये शंख विष्णु स्वरूप होता है.
दक्षिणावर्त शंख : इसका
प्रयोग मुख्यतः वादन के लिए किया जाता है. इस शंख को देवी देवताओ का अभिषेक करने
के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही जब किसी कन्या का कन्या दान किया जाता है
तो उस वक़्त भी इसी शंख के जल को इस्तेमाल में लाया जाता है.
शंख से ही पूजा क्यों की
जानी चाहिए? :
कहा जाता है कि किसी भी देवता की पूजा करने से पहले
पूजन स्थल को शुद्ध करना और पवित्र करना जरूरी होता है. इसके लिए आप तीन बार अपने
आचमन में जल ले, फिर आप हाथ में दूर्वा, अक्षत और पुष्प को लेकर शंख का ध्यान करे.
इसके बाद आप शंख के गहरे बाग़ में जल, पुष्प और दूर्वा रखकर भगवान पूंडरीकाक्ष की प्रार्थना
करके शंख में चन्दन पुष्प लगाये. तत्पश्चात आप शंख में भरे जल को अपने और पूजन
विधि में उपस्थित लोगो पर छिड़क दे. ऐसा भी माना जाता है कि शंख का जल ब्रहम हत्या
आदि अनेक पापो को भी नष्ट कर देता है और इसिलिया ही इसके जल का भी विशेष महत्व है.
पूजा के स्थान पर शंख का महत्व |
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