शंकराचार्य जयंती (Shankracharya Jayanti)
जन्म - शंकराचार्य एक असाधारण व्यक्ति हैं. इन्हें हिन्दू समुदाय के लोग आदि
शंकराचार्य धर्मगुरु के नाम से सम्बोधित करते हैं. इनका जन्म 788 ईसा पूर्व
में वैसाख मास के शुक्ल पंचमी के दिन केरल राज्य के कालड़ी नामक स्थान पर एक
ब्राहमण के घर में हुआ था. इनके पिता का नाम शिवगुरु नामपुद्री
था तथा इनकी माता का नाम विशिष्टादेवी था. आदि गुरु शंकराचार्य जी
अपने माता और पिता के एकलौते पुत्र थे. जिनका जन्म इनके माता पिता के द्वारा कई
सालों तक शिव भगवान की उपासना करने के बाद शिवजी के द्वारा दिए गये वरदान से हुआ
थे.
शंकराचार्य की बाल्यावस्था (Shankracharya ‘s Childhood)
शंकराचार्य को शिव का अवतार माना
जाता हैं. क्योंकि इनका जन्म शिवजी के द्वारा वरदान देने के बाद ही हुआ था.
इन्होनें बचपन में ही असामान्य लगने वाले कार्य कर दिखाएँ थे. जैसे – इन्होनें
केवल सात वर्ष की ही आयु में वेदों का अध्ययन कर लिए था, 12 वर्ष की आयु
में इन्होने हिन्दू समुदाय के सभी शास्त्रों को पढ़कर इनमें पारंगत हो गये थे तथा
16 वर्ष की आयु में ही इन्होनें अपनी पहली रचना ब्रहम – सूत्र का निर्माण
कर दिया था.
अद्वैत वेदांत दर्शन के स्थापक शंकराचार्य (The Founder of
Advait Philosophy)
आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने अद्वैत वेदांत के दर्शन को सिद्ध करते हुए यह
प्रतिपादित किया की जीव और ब्रह्म एक ही हैं. उनका कहना था कि जिस प्रकार
झील में तरंगें पानी से ही उत्पन्न होती हैं ठीक उसी प्रकार जीव की उत्पत्ति ब्रहम
से हुई हैं. इसलिए इन दोनों को लग – अलग न मानकर एक मानना चाहिए.
ब्रह्म और जीव के इस सम्बन्ध का प्रतिपादन करने का शंकराचार्य के दो मुख्य
उद्देश्य था. पहला उद्देश्य सभी जाती व वर्ग के व्यक्तियों को समानता का महत्व
बताना था. सभी व्यक्तियों में समानता सिद्ध करने के लिए वे कहते थे कि “जब सभी
जीवों में ब्रह्म की उपस्थिति हैं तो इसका अभिप्राय यह हैं कि सभी जीवों में
ब्रह्म के तत्व भी उपस्थित हैं. तो फिर ऊंच - नीच जाती या धर्म की पहचान कैसे हो
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Aadi Guru Shankracharya ki Jayanti ki Shubhkamnayen |
शंकराचार्य का यह सिद्धांत स्थापित करने का दूसरा उद्देश्य संसार में ज्ञान
बाँटना था तथा ज्ञान को सर्वोपरी सिद्ध करना था. आदि गुरु शंकराचार्य डिग्री और
ग्रंथों के ज्ञान को ज्ञान नहीं मानते थे. उनके लिए सर्वश्रेष्ठ ज्ञान जीव की
समझदारी व उसकी बुद्धि हैं जिसके द्वारा ही जीव किसी भी कार्य को कर पाने में
सक्षम होता हैं.
जगतगुरु के रूप में शंकराचार्य (Shankracharya As Jagatguru)
शंकराचार्य का मन बचपन से ही वेदों का अध्ययन करने में रमता था. उन्होंने
ज्ञान प्राप्त करने के लिए शिवजी की कठोर तपस्या की थी. जब आदि गुरु शंकराचार्य को
ज्ञान की प्राप्ति हुई तो उन्होंने विभिन्न स्थानों का भ्रमण करना शुरू कर दिया और
जगह – जगह वेदों के दर्शन और शास्त्रों के ज्ञान का प्रसार किया. ऐसा माना जाता था
कि शंकराचार्य की वाणी में सरस्वती का वास था. वो जो भी कहते थे वो सच हो जाता था.
शंकराचार्य हिन्दू समुदाय के प्रचारक थे. इन्होने अपना पूरा जीवन हिन्दू समुदाय के
लोगों को शास्त्रों का ज्ञान देने में व्यतीत कर दिया था.
मठों की स्थापना (Establishment of Monasteries)
आदि गुरु शंकराचार्य ने हिन्दू समुदाय के लोगों को एकजुट करने के लिए चार मठों
की स्थापना की. जिनकी जानकारी निम्नलिखित दी गई हैं –
1. वेदांत ज्ञानमठ – इस मठ की स्थापना
इन्होने दक्षिण भारत के श्रृंगेरी नामक स्थान पर की थी.
2. गोवर्धन मठ – इस मठ की स्थापना आदि
गुरु शंकराचार्य ने जगन्नाथपुरी (पूर्वी भारत) में की थी.
3. शारदा (कालिका) मठ – इस मठ की स्थापना
शंकराचार्य जी ने पश्चिमी भारत के द्वारका क्षेत्र में की थी.
4. ज्योतिर्पिठ मठ – इस मठ की स्थापना जगतगुरु
ने उत्तर भारत के बद्रीकाश्रम में की थी.
इन मठों की स्थापना के अलावा शंकराचार्य ने “दसनामी
सम्प्रदाय” की भी स्थापन की थी. इस सम्प्रदाय की स्थापना गरूजी ने 4 अलग – अलग
वर्ण के शिष्यों को लेकर की थी.
शंकराचार्य की रचना (Shankracharya’s Creation)
शंकराचार्य ने मठों में अपने शिष्यों को शिक्ष देने के साथ –
साथ ग्यारह उपनिषदों की तथा गीता पर भाष्यों की रचना की थी. इन ग्रंथों की
रचना इन्होने वैदिक धर्म और दर्शन को आधार बन कर की थी. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT महावीर स्वामी जयंती ...
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आदि गुरु शंकराचार्य जयंती की शुभकामनाएं |
शंकराचार्य जयंती कैसे मनाई जाती हैं (How to Celebrate
Shankrachary Jayanti)
शंकराचार्य की जयंती मनाने के लिए इस दिन इनके द्वारा
स्थापित चारों मठों में इनके शिष्यों पूजा व हवन करते हैं. अन्य जगहों पर इनके
जन्म उत्सव पर विभिन्न धार्मिक कार्यकर्मों का आयोजन किया जाता हैं. कुछ स्थानों
पर इनकी याद में शोभायात्रा भी निकाली जाती हैं. इस शोभायात्रा में शंकराचार्य के
दर्शन को मानने वाले अनेक श्रद्धालु एकत्रित होते हैं और भजन कीर्तन करते हुए, गुरु
के उपदेशों को याद करते हैं. इस दिन कुछ विद्वानों के द्वारा वेदों का पाठ भी किया
जाता हैं.
आदि गुरु शंकराचार्य की जयंती के बारे में अधिक जानने के लिए आप तुरंत नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर सकते है.
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