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Karva Chauth ke Vrat ka Mahattav Katha or Vidhi | करवा चौथ के व्रत का महत्तव कथा और विधि

करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. कार्तिक मास का कृष्ण पक्ष सितम्बर या अक्टूबर माह में आता है. इस त्यौहार को स्त्रियों का मुख्य त्यौहार माना जाता है. करवा का अर्थ होता है मिटटी का बना पात्र. इस दिन सभी विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु की मंगल कामना के लिए व्रत रखती है और रात्री को चंद्रमा के उदय से पहले सोलह सिंगार करके चन्द्रमा के निकलने की प्रतीक्षा करती है, चन्द्रमा के निकलने के बाद स्त्रियाँ मिटटी के बने जल के पात्र की पूजा करके चन्द्रमा को अर्ध देती है और स्वयं के अखंड सौभाग्यवती रहने की कामना करती है. माना जाता है कि अगर इस व्रत को करने वाली स्त्री अपने पति के साथ मर्यादा, विनम्रता और समर्पण भाव से रहती है और उसका पति भी अपने समस्त कर्तव्यो का और धर्म का सुचारू रूप से पालन करता है तो दंपति के जीवन में सुख समृद्धि हमेशा बनी रहती है.

करवा चौथ की पौराणिक कथा :
पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवो के वनवास के दौरान अर्जुन तप करने के लिए इंद्रनील पर्वत पर चले गये थे, उन्हें लौटे बहुत दिन बीत गये थे, इस वजह से द्रौपदी चिंतित होने लगी थी. द्रौपदी को चिंतित देखकर भगवान श्री कृष्ण उनकी चिंता का कारण समझ गये थे किन्तु फिर भी उन्होंने द्रौपदी से उनकी चिंता का कारण पूछा तो द्रौपदी ने श्री कृष्ण जी के सामने अपनी चिंता प्रकट की, तब श्री कृष्ण जी ने स्वयं द्रौपदी को इस व्रत के महत्त्व और इसके विधान के बारे में बताया. इसके बाद द्रौपदी ने श्री कृष्ण जी से व्रत को रखने की सम्पूर्ण विधि के बारे में पूछा और पुरे मन से उपवास रखा, द्रौपदी को उनके व्रत का शीघ्र ही फल भी प्राप्त हुआ और अर्जुन सकुशल अपनी तपस्या को पूरा कर पर्वत से लौट आयें.
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करवा चौथ के व्रत का महत्तव कथा और विधि
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करवा चौथ के करवे की कथा :
पुराणों की कथा के अनुसार तुंगभद्रा नदीके किनारे स्थित गाँव में करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ रहती थी. उसका पति वृद्ध और दुर्बल था. एक दिन वो नदी के किनारे कपडे धो रहा था कि अचानक एक मगरमच्छ ने करवा के पति के पैरो को अपने दांतों में दबाया और उसे यमलोक लेकर जाने लगा. वृद्ध धोबी इस बात से घबरा गया और करवा.. ! करवा..! चिल्लाकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा.

अपने पति की पुकार को सुनकर करवा भी वहां पहुंची और देखा कि मगरमच्छ उसके पति को लेकर जा रहा है. करवा ने उस मगरमच्छ को एक धागे से बाँध दिया और उसे लेकर यमराज के द्वार पहुँच गयी. करवा ने यमराज से अपने पति की रक्षा के लिए गुहार लगाई और साथ ही कहा कि वो मगरमच्छ को उसके कार्य के लिए उसे कठिन से कठिन दंड दें . उसने कहा कि हे प्रभु ! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैरो को पकड़ लिया है और आप अब इस मगरमच्छ को इसके अपराध के लिए इसे नरक भेज दें. 

इस पर यमराज ने करवा को कहा कि अभी तो मगरमच्छ की आयु शेष है और इसलिए मै उसे यमलोक नही भेज सकता. इस पर करवा ने यमराज को कहा कि अगर आपने मेरे पति के प्राणों के लिए मेरी सहायता नही की तो मै आपको श्राप देकर नष्ट कर दूंगी. करवा का साहस देख यमराज भी थोड़े डर गये और मगर को यमपुरी भेज दिया. साथ ही उन्होंने करवा के पति को भी दीर्घायु होने का वरदान दे दिया. तब से ही हर कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ मनाने का प्रचलन चला आ रहा है और आज हर विवाहित स्त्री अपने पति की लम्बी उम्र के लिए पुरे भक्ति भाव से इस दिन पूजा करती है. 
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Karwa Chauth Vrat ki Pauranik Vidhi
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करवा चौथ की व्रत विधि :
-       आप सुबह जल्दी नहाकर व्रत रखने का संकल्प करें और अपनी सास के द्वारा भेजी गई सरगी खाएं. सरगी में मिठाई, फल, सेवई, पुड़ी और साज श्रृंगार का सामान आता है. ध्यान रखे कि आप सरगी में प्याज और लहसुन का सेवन न करें. 

-       सरगी के करने के बाद स्त्री का निर्जल व्रत शुरू हो जाता है. अब आप माता पार्वती, महादेव शिव और गणेश जी का पुरे मन से ध्यान करें. 

करवा चौथ की पूजन विधि :
इस दिन विवाहिता को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहियें और साफ़ स्वच्छ कपड़ो को पहनना चाहियें, इसके बाद स्त्रियों को करवे की पूजा के साथ साथ शिव पार्वती जी की पूजा करनी चाहियें. करवा चौथ के दिन माता पार्वती जी की पूजा इसलिए होती है क्योकि माता पार्वती जी ने भी भगवान शिव को कठिन तपस्या के बाद ही पाया था और अखंड सौभाग्यवती हुई थी.
शाम को विवाहिता को एक लकड़ी के पटरे पर लाल कपडा बिछाकर, उस पर भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय और गणेश जी की प्रतिमा रखनी चाहियें. वहीं पर एक लोटे पर श्री फल रख उसे कलावा बांधकर रखना चाहियें. इसके बाद एक मिटटी के करवे में थोड़े गेहूं, शक्कर और एक नकद रुपया रखना चाहियें. आप करवे को भी कलावा बाँध लें.

अब आपको धुप, दीप, अक्षत और पुष्प चढ़ाकर पूजन करना चाहियें. जब आप पूजा कर रहे हो तब आप करवे पर 13 बार टीका करें और करवे को पटरे के चारो तरफ 7 बार घुमाएँ. इसके बाद आप अपने हाथ में 13 गेहूं के दाने लें और करवा चौथ की कथा को सुने. पूजा के दौरान विवाहिता को अपने सुहाग का सामान जैसे चूड़ी, बिछिया, सिंदूर, मेहँदी और महावर आदि को पूजा में माता को चढ़ाना चाहियें और उसे बाद में अपनी सास को या ननंद को देना चाहियें. इसके बाद शाम को चाँद को अर्ध्य देकर अपने पति के पैरो को स्पर्श करें और उनका आशीर्वाद लें. इसके बाद आप उन्ही के हाथो से पानी और अन्न का पहला निवाला ग्रहण करके अपने व्रत को खोले.

करवा चौथ के ज्योतिषीय महत्त्व :
ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा को मन का कारक माना जाता है. अर्थात चन्द्रमा की पूजा करने से मन की चंचलता बनी रहती है और मन प्रसन्न रहता है. चन्द्रमा हमारे मन के अशुद्ध विचारो को दूर कर शुभ विचार को उत्त्पन्न करता है और मनुष्य के शुभ विचार ही मनुष्य को शुभ कर्म करने के लिए प्रेरित करते है तो इस दृष्टी से भी चन्द्रमा की पूजा महत्त्वपूर्ण होती है. करवा चौथ के दिन स्त्री को अपने मन में अपने दोषों को स्मरण करके अपने पति, सास ससुर और बुजुर्गो के चरण स्पर्श करने चाहियें और इसी भाव से ये शपथ लेनी चाहियें कि वे अपनी गलतियों को दुबारा नही करेंगी. इस तरह इन्हें अपने दोषों से भी मुक्ति मिलती है.

 
Karva Chauth ke Vrat ka Mahattav Katha or Vidhi
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