कामाख्या माँ के मंदिर के
बारे में विशेष जानकारी
आज हम आपको माँ कामाख्या के
मंदिर के बारे में बतायेंगे तथा इसके साथ – साथ ही आप माँ के साक्षात् दर्शन कैसे
कर सकते हैं, मंदिर के अंदर जाकर कैसा अनुभव होता हैं. इन सभी बातों की जानकारी भी
आपको देंगे.
कामाख्या माँ के मंदिर में
जाने पर हमें ऐसा अनुभव होता हैं, जैसे हमने किसी शिवलिंग के अंदर प्रवेश कर लिया
हो. कामाख्या माता के मन्दिर की रचना वास्तु शास्त्र के अनुसार की जाती हैं. इनके
मंदिर में किसी तरह पेंट या रंग का प्रयोग नहीं किया जाता. माता के मंदिर में आने
वाले अधिकांश श्रद्धालुओं का मानना यह होता हैं कि मंदिर में पेंट या रंग का
इस्तेमाल इसलिए नहीं किया जाता होगा कि कोई भी व्यक्ति मंदिर की माँ की प्रतिमा की
तस्वीर न खिंच सके. तस्वीर उन्ही की खिंची जाती हैं जो सकारात्मक रूप से दिखाई
देते हो. अदृश्य शक्ति को देखने के लिए किसी यंत्र की या वस्तु की आवश्यकता नहीं
पडती. CLICK HERE TO READ MORE POST ...
Kamakhya Maa Ke Mandir Ki Vishesh Jankari |
कामाख्या माता के मंदिर में
माता का असली रूप उनकी ज्योत को माना जाता हैं तथा जब हम मंदिर में प्रवेश करते
हैं तो हमें वहाँ पर अंधकार ही अंधकार नजर आता हैं और उसमें जल रही एक धीमी सी रौशनी
सहित एक लौ नजर आती हैं. माता के मंदिर के अँधेरे में आँखों को बंद करने के बाद
यदि कोई दृश्य सामने आता हैं तो वह दृश्य ही माता का साक्षात् रूप होता हैं.
माता को साक्षात् देखने के
लिए आप एक तरीका और भी आजमा सकते हैं. माता के दर्शन करने के लिए मंदिर में नीचे
बहते पानी को हाथ से स्पर्श करें और अपनी आँखों को बंद कर लें. आँखों को बंद करने
के बाद आपको अँधेरा नजर आयेगा और इस अँधेरे में ही माता की एक झलक आपको क्षण भर के
लिए नजर आएगी. यही क्षण भर की झलक ही माता का साक्षात् रूप होता हैं. जिसे हमें
अपने मन में हमेशा के लिए बसा लेना चाहिए.
षोडाक्षरी मन्त्र
कामाख्या माता की साधना
करने के लिए षोडाक्षरी मन्त्र बहुत ही महत्वपूर्ण होता हैं तथा इस मन्त्र को
आत्मसात करने के बाद ही माता की साधना पूरी होती हैं.
षोडाक्षरी मन्त्रों के बारे में यह
कहा जाता हैं कि “ हे माता मुझे राजपथ दे दो, सिर दे दो. लेकिन षोडाक्षरी मत दो. क्योंकि षोडाक्षरी के रहने पर राज पाठ मिल जायेगा. परन्तु षोडाक्षरी
के न रहने पर कुछ भी प्राप्त नहीं होगा. CLICK HERE TO READ MORE POST ...
कामाख्या माँ के मंदिर की विशेष जानकारी |
बलि का स्थान
कामाख्या माँ के मंदिर के अंदर प्रवेश करने पर एक बलि का स्थान नजर आता हैं.
इस स्थान के बारे में यह कहा जाता हैं कि भूतकाल में यहाँ पर मनुष्यों की बलि चढाई
जाती थी. वर्तमान समय में यहाँ पर किसी की बलि नहीं चढाई जाती. लेकिन इस स्थान के
पीछे आज भी बकरे की बलि दी जाती हैं.
बलि चढाने का वर्णन किसी भी तंत्र में नहीं मिलता तथा यह प्रकृति के अनुरूप भी
ठीक नहीं हैं. बलि देना एक कुप्रथा बन गई हैं. बलि देने की प्रथा मनुष्य ने अपने
स्वार्थ की सिद्धि के लिए बनाये हैं. शास्त्रों में बलि देने का अर्थ अपने अहम की
बलि देना हैं. अपने लालची मन की बलि देना हैं. लेकिन मनुष्य ने इसे अपने लालच को
पूर्ण करने का एक जरिया बना लिया हैं. मनुष्य अपने अहम को खत्म करने के बदले मैं -
मैं कहने वाले
जानवर की बलि देते हैं.
धर्म स्थान कभी भी दुष्कर्मों को करने के लिए नहीं बनाए जाते. एक जीव दुसरे जीव
का आहार जरुर हैं. लेकिन जब जीव के पास भोजन करने के लिए खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं
तो किसी की बलि देने की क्या जरूरत हैं.
अगर कोई भी व्यक्ति माँ कामाख्या के साक्षात् रूप का दर्शन करना चाहता हैं तो
उसे पहले अपने अंदर के अहम की बलि देनी चाहिए. अपने अंदर के अहम को अगर अपने से
दूर किया दिया जाये तो व्यक्ति को सभी सिद्धियों की प्राप्ति अपने आप हो जाती हैं.
मंदिर में बली चढाने का जो स्थान बनाया गया हैं, यह स्थान प्राचीन भवन निर्माण
प्रणाली के अनुरूप मंदिर के दक्षिण तथा पश्चिम भाग में बनाया गया हैं. इस स्थान का
प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में हैं. माँ कामाख्या के मंदिर में यह स्थान सकारात्मक
ऊर्जा को प्राप्त करने का मुख्य स्थान माना जाता हैं.
कामाख्या
माँ के मंदिर के बारे में अधिक जानने के लिए आप तुरंत नीचे कमेंट करके जानकारी
हासिल कर सकते है.
Special Information Of Kamakhya Mata Temple |
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