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Govardhan Pooja Ka Mahattav Vidhi or Katha | गोवर्धन पूजा का महत्तव विधि और कथा

गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है. दीपावली के अगले दिन होने वाली इस पूजा में गोवर्धन पूजन के साथ गौ पूजन, अन्नकूट पूजन, मर्गपाली और बलि पूजन भी होता है. गोवर्धन पूजन में गोधन यानी गायों की पूजा विशेष है क्योकि गाय को देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है. देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती है, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध रूपी धन से हमारे स्वास्थ्य को उत्तम रखती है. इस पर्व को गौ माता के प्रति श्रदा को प्रकट करने के लिए ही मनाया जाता है. 


गोवर्धन पूजा का महत्त्व :

इस उत्सव को गाँव के लोग बड़े चाव से मानते है. गाँव के लोग इस पूजा के माध्यम से जलवायु और प्राकृतिक संसाधनों को अपना धन्यवाद देते है. इनकी ये भावना होती है कि इस पूजा के कारण ही मानव जाति में सभी प्राकृतिक साधन उपलब्ध है.


इस दिन पूजा के लिए लोग अपने घर के पशुओं ( गाय और बैल ) को स्नान कराते है, उनके पैर धोते है, फुल, माला, धुप और चंदन आदि से उनका पूजन करते है. साथ ही इस दिन गायो को मिठाई भी खिलाई जाती है और उनकी आरती उतारी जाती है. साथ ही इस दिन पकवानों के बीच में श्री कृष्ण की मूर्ति भी स्थापित की जाती है. माना जाता है कि गौ माता का दूध, उसके दूध से बनी दही, घी, छांछ और मक्खन, यहाँ तक की गौ माता का मूत्र भी मानवजाति के लिए कल्याणकारी होता है. इसीलिए गाय माता को गंगा नदी के तुल्य माना जाता है और इनकी पूजा होती है.
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Govardhan Pooja Ke Wallpapers Photos Images
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ये पर्व इस बात का सन्देश देता है कि हमारा जीवन प्रक्रति पर निर्भर करता है जैसेकि पेड़ पौधे, पशु पक्षी, नदी और पर्वत इत्यादि. जलवायु संतुलन में सबसे विशेष महत्त्व पर्वत और नदियाँ रखती है इसीलिए ये पर्व इन सभी प्राकृतिक धन संपत्ति के प्रति हमारी भावना को भी व्यक्त करता है. 


गोवर्धन पूजन विधि :

इस दिन सुबह मकान के द्वार या आँगन में गौ के गोबर और खेत की शुद्ध मिटटी से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है, साथ ही इस दिन भगवान को विभिन्न प्रकार के पकवान बनाकर, रंगोली मांडकर और पके हुए चावल अर्पित किये जाते है. इसे छप्पन भोग कहा जाता है. इन पर्वतो को 56 भोग का नैवेध चढ़ाया जाता है.


विधि :

·         इसके लिए आप सुबह सुबह स्नान कर लें और घर की रसोई में ताजे पकवान बनाये.


·         अब आप घर के आँगन में और खेत में भगवान गोवर्धन की गोबर से प्रतिमा बनायें. 


·         इस पूजा के लिए खेत, जलवायु और प्राकृतिक संसाधनों से जुडी सभी चीजों को पूजा में सम्मिलित किया जाता है.  


·         इसके बाद पूजा आरम्भ की जाती है और नैवेध चढ़ाया जाता है.


·         उसके बाद भगवान श्री कृष्ण की आरती की जाती है और सभी मित्रो, आस पड़ोस और परिवार के सदस्यों के बीच में प्रसाद को वितरित किया जाता है. 


·         इसके बाद सारा परिवार एक साथ बैठकर भोजन करता है. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
Govardhan Pooja Ka Mahattav Vidhi or Katha
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गोवर्धन पर्वत पूजा की कथा :

गोवर्धन पूजा के पीछे भी एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाल्यकाल से ही गोकुल में ग्वालो के बीच रहकर कई लीलायें रची थी. अपनी इन्ही लीलाओं में उन्होंने कई लोगो का उद्धार किया, तो कई लोगो का घमंड तोडा. इन्ही में से एक लीला इंद्र देव से जुडी है.


कथा के अनुसार गोकुल में सभी गाँववासी अच्छी फसल, अच्छी जलवायु के लिए इंद्र देव की पूजा करते थे. उनकी पूजा के लिए गाँववासी हर वर्ष मिलकर नाचते और गाते थे और पूजा अर्चना करते थे. अपने बाल्यकाल में श्री कृष्ण ने अपने पिता नन्द बाबा से पूछा कि वे इस पूजा को क्यों और किसके लिए करते है? तब उनके पिता ने उन्हें बताया कि ये सब इंद्र देव को अभिवादन देने के लिए किया जाता है, क्योकि उन्होंने हमे हमारी खेती के लिए और हमारे जीवनयापन के लिए ऐसी जलवायु और प्राकृतिक संसाधन दिए है. किन्तु कृष्ण जी का मानना था कि उनकी जलवायु के लिए गोवर्धन पर्वत का अभिवादन करना चाहियें नाकि इंद्र देव का. सभी को बालकृष्ण की बात अच्छी लगी और सभी ने इंद्र की पूजा को छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी आरम्भ कर दी. इससे इंद्र देव जी रूष्ट हो गये और उन्होंने नागरिको के इस बर्ताव को अपना अपमान मान लिया. जिसके दंड के रूप में उन्होंने गाँव में आंधी तूफ़ान ला खड़ा किया और चारो तरफ त्राहि त्राहि मच गयी. इसे दुखी होकर सभी गाँव वाले विलाप करने लगे. स्थिति ऐसी हो गई कि सभी का जीवन ही खतरे में आ गया. ऐसे में बाल कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी सब से छोटी ऊँगली पर उठालिया और गाँववासियो को संरक्षण प्रदान किया, सभी गांववासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहे. इसके बाद उन्होंने इंद्र देव के साथ युद्ध भी किया जिसमे इंद्र देव का घमंड टूट गया. उन्हें अहसास हुआ कि जिस जलवायु के लिए वे खुद को महान समझते थे, वो उनका कर्त्तव्य है. उन्हें इस बात की भी अनुभूति हुई कि उनका अभिमान गलत है. उसी दिन से दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है. 


गोवर्धन को पर्वतो का राजा माना जाता है, आज इसका आकर और प्राकृतिक सौन्दर्य जरुर कम हो गया है किन्तु इसकी महता आज भी उतनी ही मानी जाती है. कहा जाता है कि गोवर्धन पूजा के दिन दुखी रहने वाला व्यक्ति साल भर दुखी रहता है इसलिए हर व्यक्ति को इस पर्व को ख़ुशी से और पूर्ण भाव से मनाना चाहियें. गोवर्धन की पूजा से व्यक्ति को दीर्घायु और आरोग्य जीवन की प्राप्ति होती होती है, साथ ही व्यक्ति के जीवन से दुःख और दरिद्रता दूर होती है. इस दिन शुद्ध भाव से पूजन करने से व्यक्ति को संतुष्टि और प्रसन्नता की प्राप्ति होती है और उसके जीवन में सुख समृद्धि का वास होता है. 

 
गोवर्धन पूजा का महत्तव विधि और कथा
गोवर्धन पूजा का महत्तव विधि और कथा


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