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सच में:-

क्या सच में Made In India फ़ोन भारत में बनाते है | Kya Sach mein Made In India Phone Bharat mein Bante Hai

मेड इन इंडिया (  Made in India  ) अक्सर जब भी हम कोई प्रोडक्ट खरीदते है तो ये जरुर देखते है कि वो प्रोडक्ट किस कंट्री में बना है , आपने भ...

Chalaki or Samajhdari ka Antar | चालाकी और समझदारी का अंतर

चालाकी व् समझदारी में बहुत अंतर है. समाज व् शारीरिक निरोग के लिए वृद्धि ही नहीं सद्वृधि की जरुरत है.


समाज में प्राणियों की दो प्रवृति पाई जाती है. इनमे एक प्रवृत्ति को हम समझदार तथा दूसरी को हम मुर्ख या बिना समझ का कह सकते है. इनमे हम बुधिमानो को भी दो श्रेणियों में बाँट सकते है. एक प्रकार के बुद्धिमान वे होते है जो सबका भला करे सबके हित के बारे में सोचे. और दूसरी प्रकार के बुद्धिमान को हम सद्बुधिमान भी कह सकते है या फिर ऐसे कह सकते है की इस प्रकार की बुद्धि के प्राणी सिर्फ अपने ही स्वार्थ के लिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते है उन्हें हम चालक भी कहते है. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
चालाकी और समझदारी का अंतर
चालाकी और समझदारी का अंतर

आजकल इसी बुद्धि के कारण समाज में पाप फ़ैल रहा है दुराचार की भावना पनप रही है. चालाकी की भावना होने के कारण शिक्षा के उदेश्य भी गलत दिशा के हो गए है. इसी के कारण लोगो को ऐसी शिक्षा मिलती है की मनुष्य स्वयं अपना ही हित करने में लगा रहता है और अपने आने वाली प्रवृति के विनाश की और कदम बड़ा रहा है. चालाकी की भावना के कारण आपसी भाईचारा ख़त्म होता जा रहा है. लोगो में नागरिकता की भावना ख़त्म होती जा रही है. प्रत्येक व्यकित सिर्फ अपने ही फायदे व् तरक्की के लिए प्रयास करता है और ऐसा करके वह अपने देश, समाज व् नैतिकता का नुक्सान कर रहा है. लोगो में सिर्फ अपना फायदा करने की इच्छा प्रबल होती है चाहे दुसरे व्यक्ति की विनाश ही क्यों ना हो जाये उसे सिर्फ अपने लिए पैसा कमाना है. और ऐसी भावना सबमे होने लगी तो समझो मानव प्रवृति के विनाश का समय जल्दी ही आ जायेगा जैसा की आज के समय में हो रहा है. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
Chalaki or Samajhdari ka Antar
Chalaki or Samajhdari ka Antar


प्राचीन समय में शिक्षा का स्वरुप ही अलग था पढ़ने के लिए विद्यार्थियों को साधन समाज द्वारा उपलब्ध होते थे. वह अपने माता पिता व् घर परिवार से सम्बन्ध न रखकर समाज के बारे में सोचता था. वह अपने पालन पोषण के लिए भी समाज पर ही निर्भर था. प्राचीन समय में विद्यार्थी अपने व् अपने गुरु के लिए खाना लेने के लिए घर घर जाकर भिक्षाम देहि का उच्चारण करता था तब उसे खाने के लिए समाज द्वारा जो दिया जाता था वह उसे ग्रहण करता था. ऐसा करके घर घर जाकर उसे लोगो की मुसीबतों का पता चलता था की कैसे लोग अपने दैनिक जीवन में अपने भरण पोषण के लिए मुसीबतों का सामना करते है. ऐसे ही उसको दुनिया और समाज के दुखो का पता चलता था. तत्पश्चात वह अपनी शिक्षा पूरी करके समाज सेवा के लिए कार्य किया करता था. और अपने ज्ञान का सही प्रयोग करता था. वैसे ही आज के समाज में भी कुछ लोग ऐसे है जो निस्वार्थ दुश्रो के लिए काम करते है उनको सही रास्ता दिखाते है परन्तु ऐसे लोगो की संख्या बहुत ही कम है औरत अधिकतर लोग ऐसे है जो शिक्षित होकर भी समाज चालक ,अहंकारी, बेईमान और दुसरो का शोषण करते है वे जानबूझकर इस रास्ते की तरफ जा रहे है और स्वयं और  समाज को अंधकार में धकेल रहे है 


इसके अलावा कोई चालक व्यक्ति छल कपट या फिर अपनी किसी चालाकी से कामयाबी तो हांसिल कर लेता है परन्तु उसके मन में उलझन, तनाव, दिखावे जैसी समस्याए भी मिलेंगी. जबकि सद्बुद्धि आपको समझदारी, अध्यात्मिक शक्ति , शांति और परमात्मा के प्रति आस्था रकने के लिए भी प्रेरित करती है.
Chalaki v Samajhdari ki Bhinnata
Chalaki v Samajhdari ki Bhinnata



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