मीराबाई जयंती (Mirabai Jayanti)
मीराबाई को भगवान श्री कृष्ण की परम भक्त के रूप में जाना जाता हैं. क्योंकि
ये सदैव कृष्ण जी की अराधना में ही तल्लीन रहती थी, उनके नाम का स्मरण कर पद व गीत गाते हुए हाथ में
वीणा लिए योगिनी बनकर पूरे राजस्थान में घूम – घूम कर उनकी भक्ति का प्रचार करती
थी.
जन्म (Birth) – मीराबाई का जन्म जोधपुर राजस्थान के मेडवा नामक स्थान पर राजा रत्नसिंह
के घर हुआ था. मीरा अपने पिता की अकेली संतान थी. मीरा को माता के प्रेम का
सुख नहीं मिल पाया. क्योंकि इनकी माता की मृत्यु जब ये केवल दो वर्ष की थी तब हो गई थी. इनकी
माता के गुजरने के बाद मीरा का पालन – पोषण इनके दादा राव दूदा ने किया था.
मीरा एक राजपूत घराने की राजकुमारी थी. इसलिए इन्होने बचपन में ही शस्त्रों को
चलाना, घोड़े की सवारी करना, रथ चलाना सिख लिया था. मीरा ने संगीत गायन की
शिक्षा तथा आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की थी. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT तुलसीदास जयंती ...
Happy Mirabai Jayanti |
कृष्ण भक्त मीरा (Krishana Bhakt Mira)
मीरा का सम्पूर्ण जीवन ही श्री कृष्ण की भक्ति में गुजरा था. कहा जाता हैं कि
जब मीरा छोटी थी तब उनके पड़ोस में एक व्यक्ति के घर बारात आई हुई थी. जिसे सभी लोग
अपने – अपने घरों की छत पर खड़े होकर देख रहे थे. तब उन्होंने अपनी माँ से पूछा कि
मेरे पति कौन हैं तो उनकी माता ने श्री कृष्ण जी की प्रतिमा की ओर इशारा किया. उस
दिन के बाद से ही मीरा श्री कृष्ण भगवान की भक्ति में लीन हो गई. मीरा पूरे दिन
कृष्ण के नाम के भजन गाती रहती थी तथा उनकी मूर्ति के समक्ष पैरों में घुंघरू बांध
कर नाचती रहती थी तथा कृष्ण की मूर्ति से अपने – सुख – दुःख की बातें करती रहती
थी.
मीरा को जहर देने का प्रयास
मीरा का विवाह मेवाड़ के राजा संग्राम सिंह के पुत्र भोजराज से कर दिया गया था
तथा उनके विवाह के ही 10 दिनों के बाद उनके पति की मृत्यु हो गई थी. मीरा के पति
की मृत्यु के बाद मीरा ने अपना अधिकतर समय कृष्ण भक्ति में लीन साधु और संतों के
साथ व्यतीत करना शुरू कर दिया था. मीरा के पति के बाद मेवाड़ का राजसिहांसन उनके
देवर विक्रमजीत ने ग्रहण किया. विक्रमजीत को मीराबाई का साधु – संतों की टोली के
साथ बाहर जाकर कीर्तन करना बिल्कुल पसंद नहीं था. मीरा को साधु – संतों से के साथ
कीर्तन करने से रोकने के लिए ही उन्होंने
अपने महल में ही एक कृष्ण जी की मूर्ति स्थापित करवाकर मंदिर बनवा दिया था. जिसमें
मीरा पुरे दिन कृष्ण के भजनों को गाती और नाचती थी. कुछ समय के बाद साधु – और संत
मीरा के महल में आकर कीर्तन करने लग गये. जिससे विक्रमजीत बहुत ही क्रोधित हो गया
और उसने इन सब से छुटकारा पाने के लिए मीरा को मारने की कोशिश की. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT कबीरदास जयंती की शुभकामनाएं ...
मीराबाई जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं |
उसने मीरा को मारने के लिए कृष्ण की मूर्ति पर चढाने वाले फूलों की टोकरी में
सांप रख दिया. जब मीरा ने टोकरी को खोला तो उसे वहाँ सांप की जगह पर कृष्ण जी की
मूर्ति मिली. एक बार उसने मीरा को विष का प्याला पीने के लिए दिया. जिसे पीने के
बाद भी मीरा जीवित थी और उस पर विष का प्रभाव नहीं हुआ. ऐसा माना जाता हैं कि
कृष्ण जी की कृपा भी हमेशा मीरा पर बनी रहती थी इसी लिए अनेक प्रयास करने के बाद
भी मीरा को कुछ नहीं हुआ.
मीराबाई के ग्रंथ (Mira ‘s Books)
मीराबाई के गुरू संत रविदास थे तथा मीरा उनकी मुख्य शिष्या थी. मीरा ने संत
रविदास जी के आश्रय में रहते हुए मीरा ने संगीत की शिक्षा तथा वीणा बजाने की
शिक्षा ग्रहण की थी. मीरा भक्तिकालीन हिंदी साहित्य के इतिहास के कृष्णकाव्य धारा
की कवयित्री थी. सूरदास के बाद कृष्णकाव्य शाखा के प्रसिद्ध रचनाकारों में इनकी
गणना की जाती हैं. मीरा ने कृष्ण की भक्ति को ही आधार बनाकर इन्होने राजस्थानी,
ब्रज, गुजराती भाषाओँ में पदों की रचना की थी. इनके पदों की रचना को चार ग्रंथों
के नाम से जाना जाता हैं जिनका विवरण निम्नलिखित हैं -
1. बरसी का मायरा
2. गीत गोविन्द टीका
3. राग गोविन्द
4. राग सोरठ
मीराबाई जयंती के बारे में अधिक जानने के लिए आप तुरंत नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर सकते है.
Krishna Bhakt Mirabai |
Happy Mirabai Jayanti, मीराबाई जयंती की हार्दिक
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