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Gular Ke Ayurvedic Fayde or Mahatav | गुलर के आयुर्वेदिक फायदे और महत्व | Ayurvedic Benefits for Ficus Racemosa

गूलर का पेड़ भारत के सभी स्थानों में पाए जाने वाले पेड़ों में से एक है. इसका पेड़ बहुत बड़ा होता है. गूलर के पेड़ पर फल तो होते हैं पर फूल नही आते. गूलर का फल सर्दियों में नही बल्कि गर्मियों में होते हैं. गूलर के फल को सुखाकर दवाई बनाई जाती है. 


गूलर के पेड़ की ऊंचाई लगभग 50 – 60 फुट होती है. गूलर का फल लम्बा नही बल्कि गोल होता है. गूलर को अंग्रेजी भाषा में ‘ फिग ट्री ‘ कहा जाता है. गूलर के फल में से सफेद – सफेद दूध निकलता है. इसका फल पकने से पहले हरे रंग होता है तथा पकने के बाद लाल रंग का होता है. गूलर का फल मार्च से जून महीने के बीच में होता है. इसका फल बहुत मीठा होता है, अधिक मीठा होने के कारण इसमें जल्दी फल लग जाते हैं. गूलर के कुछ फल के अंदर किडन भी पाए जाते हैं. इसलिए इसे खाने से पहले अच्छी तरह से देंख लें. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
गुलर के आयुर्वेदिक फायदे और महत्व
गुलर के आयुर्वेदिक फायदे और महत्व

गूलर को अनेक भाषाओँ में निम्न नाम से जाना जाता है –


1.       संस्कृत में इसे उदम्बर कहा जाता है.


2.       हिंदी में इसे गूलर कहा जाता है.


3.       मराठी में गूलर को उम्बर के नाम से जाना जाता है. 


4.       गुजराती में आप इसे उम्बरो कहते हैं.


5.       बंगला में लोग इसे यज्ञडूम्बर के नाम से जानते हैं.


6.       तेलगु भाषा में इसे अत्ति कहा जाता है.


7.       तामिल हम इसे अत्तिमरम कहते हैं.


8.       कन्नड में गूलर को अति बोला जाता है.


9.       मलयालम में आप इसे अत्ति कहते हैं.


10.   उडिया में इसे डिमरी कहते हैं.


11.   फारसी में इसे अन्जीरे आदम कहा जाता है.


12.   अंग्रेजी में हम इसे country fig  कहते हैं तथा 


13.   लेटिन में इसे फिफस ग्लोमरेट के नाम से जाना जाता है.


गूलर हमें अनेक रोगों से मुक्त करता है जैसे –

1.       गर्भसंधान कारक

2.       व्रण रोपक

3.       रूक्ष

4.       अस्थिसंधान कारक

5.       व्रण क्षोधक

6.       रोपण

7.       पित्त

8.       कफ

9.       रक्तविकार शामक तथा

10.   अतिसार 


गूलर की छाल हमारे लिए अत्यंत उपयोगी है यह हमारे निम्न अनेक दोषों को नाश करती है जैसे –

1.       तृषा

2.       पित्त

3.       कफ

4.       रुधीर

5.       मोह

6.       वमन

7.       प्रदर

8.       दीपन

9.       मसि

10.   रक्तदोष

11.   दाह

12.   क्षुधा

13.   प्रमेह

14.   शोक  

15.   मूर्छा आदि 


गूलर के फल में अनेक पदार्थ निम्न मात्रा में पाए जाते हैं –


1.       गूलर के फल में आर्द्रता 13.6 प्रतिशत पाई जाती है.

2.       इसके फल में अल्ब्युमिनाइड 7.4 प्रतिशत पाया जाता है.

3.       वसा 5.6 प्रतिशत पाई जाती है .

4.       कार्बोहाइड्रेट 49 प्रतिशत पाया जाता है.

5.       इसमें रंजक द्रव्य 8.5 प्रतिशत पाया जाता है.

6.       सूत्र 17.9 प्रतिशत पाए जाते हैं.

7.       भस्म 6.5 प्रतिशत पाया जाता है.

8.       सिलिका 0.25 प्रतिशत पाई जाती है.

9.       तथा फास्फोरस 0.91 प्रतिशत पाया जाता है.


गूलर की छाल में 14 प्रतिशत टैनिन होता है तथा गूलर के दूध में 4 से 7.4 प्रतिशत रबड़ पाया जाता है . 


आयुर्वेदानुसार गूलर के पेड़ के हर भाग में दूध पाया जाता है. जब गूलर के पेड़ के भाग में से दूध निकलता है तब उसके दूध का रंग सफेद होता है तथा कुछ देर बाद उसके दूध का रंग पीला हो जाता है. यह हमारे लिए बहुत उपयोगी है. 


हमें गूलर का सेवन मात्रानुसार ही करना चाहिए जो निम्न हैं –

1.       गूलर का फल 2 से 4 तक करना चाहिए.


2.       गूलर की छाल का सेवन 5 से 10 ग्राम करना चाहिए.


3.       बड़ों को इसका दूध 10 से 20 बूँद लेना चाहिए तथा


4.       छोटों को इसके दूध का सेवन 5 से 10 बूँद करना चाहिए. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
Gular Ke Ayurvedic Fayde or Mahatav
Gular Ke Ayurvedic Fayde or Mahatav

आयुर्वेदानुसार गूलर के निम्न औषधीय उपयोग हैं –

1.       रक्त प्रदर – (1) गूलर के फलों को सुखाकर उसे पीसकर उसका चूर्ण चीनी में मिलाकर सुबह शाम खाया जाता है इससे हमारा रक्त प्रदर ठीक हो जाता है.   

           (2) रक्त प्रदर में हमें दूध का सेवन करना चाहिए.

           (3) पके हुए गूलर के बीज निकालकर उसे पानी के साथ पीसकर उसका रस निकालकर रस में शहद मिलाकर खाने से हमारा रक्त प्रदर ठीक हो जाता है.


2. सूखा रोग – आयुर्वेदानुसार गूलर का दूध मां के या गाय, बकरी या भैंस के दूध के साथ मिलाकर पीने से हमारा शरीर सूखे रोग से मुक्त रहता है.


3. खुनी बवासीर – (1) इस दशा में हमें कच्चे गूलर की सब्जी खानी चाहिए.

                (2) गूलर के सूखे फलों को पीसकर, छानकर उसमें चीनी मिलाकर प्रतिदिन खाने से हम खुनी बवासीर रोग से मुक्त हो जाते हैं.

               (3) खुनी बवासीर में हमें 10 बूँद गूलर का दूध 1 चम्मच पानी में मिलाकर पीना चाहिए.


3. मधुमेह – इसके फल को पीसकर पानी के साथ पीने से हम मधुमेह रोग से मुक्त हो जाते हैं.


4. दन्त रोग – दंत रोग में हमें गूलर के 2 – 3 फल पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर इसके काढ़े से कुल्ला करना चाहिए इससे हमारे दांत व मसूढ़े स्वस्थ तथा मजबूत रहते है.


5. निमोनिया – निमोनिया होने पर गूलर के दूध को पानी में मिलाकर काढ़ा बनाकर पिलाया जाता है.


6. गर्भपात एवं गर्भाशय की पीड़ा – इस दशा में हमें गूलर के काढ़े में चीनी तथा चावल का धोवन मिलाकर पीना चाहिए.


7. फोड़ा फुन्सी – फोड़ा फुन्सी होने पर हमें फोड़े फुंसियों पर गूलर का दूध लगाना चाहिए.


8. मंदग्नि  – मंदाग्नि रोग होने पर गूलर के ताजे पत्तों को पीसकर, गोली बनाकर छाया में सुखाकर छाछ के साथ खाना खाने के समय लिया जाता है.


9. मुह के छाले – गूलर के पत्तों की गोलियों को चूसने से हमारे मुह के छाले छाले ठीक हो जाते हैं.


10. मोच या हड्डी टूटना – मोच आने पर या हड्डी टूटने पर गूलर की छाल, गेहूं भीगाकर, पीसकर देशी घी में मिलाकर थोडा गर्म करके लेप लगाया जाता है इससे लगभग 1 सप्ताह में टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है.


11. रक्त स्राव – इस अवस्था में पके हुए गूलर को पीसकर शहद में मिलाकर 20 -25 दिनों तक खाया जाता है.


12. नकसीर – इसमें गूलर के फलों को सुखाकर उसे पीसकर, छानकर, चीनी मिलाकर रोज पीने से नकसीर का रोग ख़त्म हो जाता है.


14     नासूर – इसमें पके हुए गूलर के फलों को, गूलर के छाल के रस में घोंटकर, धुप में सुखाकर, इसकी गोली बनाकर दिन में 4 बार 2 - 2 गोली शहद में मिलाकर चाटना चाहिए, फिर बकरी का दूध पीना चाहिए.


15     आमातिसार – आमातिसार रोग होने पर गूलर के जड को पीसकर खाना चाहिए.


16     श्वेत प्रदर – श्वेत प्रदर में हमें गूलर का रस पीना चाहिए.


17     पित्त ज्वर – पित्त ज्वर होने पर हमें गूलर के जड़ की छाल के हिम को चीनी में मिलाकर पीना चाहिए.


18     पित्त विकार – पित्त विकार होने पर गूलर के पत्तों को पीसकर, शहद के साथ चाटा जाता है.
 
Ayurvedic Benefits for Ficus Racemosa
Ayurvedic Benefits for Ficus Racemosa


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1 comment:

  1. मेरे माथे ने चोट लगने से बायी आँख का दाहिना किनारे की बाजू और नाक के उपरी भाग के बिच की स्किन कटनेपर डॅाटर ने स्टिचेस लगाये थे।

    (१) कुछ दिन बाद उस कहे भाग मे एक गाठ आयी है। गाठ कॅाफी छोटी है। करीब ७-८ सालसे उसकी साईज एक जैसी ही है।
    (२) उसी तऱ्हा उसी बायी आँख के उपर भी स्किन कट हो जाने से स्टिचेस लगवाये थे। पर स्टिचेस ठिक से नही लगाने की वजहसे उपरी स्कीनऔर उसके निचेकी स्कीन का अंदरका लेअर आपस में चिपक गयी है। इसलिये उपरी स्कीन बाकी स्कीन जैसी फ्लेक्सीबल नही होती। इसके लिये कृपया उपाय बताये। धन्यवाद !

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