पांच तत्व और वास्तु (Five Elements And Vastushastra)
पांच तत्व संसार के ऐसे पांच विशिष्ट तत्व हैं जिनके आधार पर ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड
की तथा मनुष्य की रचना हुई हैं. ये पांच तत्व हैं –
1.
पृथ्वी
2.
जल
3.
अग्नि
4.
वायु
5. आकाश CLICK HERE TO READ MORE ABOUT हाथ से भोजन खाने के फायदे ...
Vastushastra or Panch Tatvon ka Sambandh |
ऐसा माना जाता हैं कि इन पांच तत्वों का प्रभाव सम्पूर्ण संसार पर तो
पड़ता ही हैं इसके साथ ही इनका प्रभाव मनुष्य जीवन के ऊपर भी पड़ता हैं. यहाँ
तक की जब एक मकान पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो जाता हैं तो ये पांच तत्व उसमें
भी समाहित हो जाते हैं. इसीलिए वास्तु शास्त्र में इनका विशेष ध्यान रखा गया
हैं. यदि इन पांच तत्वों का मनुष्य अपने जीवन में ध्यान न रखें तो उसे विभिन
प्रकार की समस्याओं का भी सामना करना पड सकता हैं. जिनका विवरण नीचे दिया गया हैं.
पांच तत्वों के प्रतिकूल प्रभाव (Adverse Effects of the Five Elements) –
1.यदि कोई भी मनुष्य अपने जीवन में इन पांच तत्वों का
ध्यान न रखकर इनके विरूद्ध कार्य करता हैं तो उस घर में आर्थिक तंगी,
गम्भीर रोग, मानसिक तनाव की समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
2. इन तत्वों की प्रकृति के विपरीत कार्य करने पर मनुष्य
के शरीर में उपस्थित ऊर्जाएं गलत दिशाओं की ओर अग्रसर होने लगती हैं.
3.इन तत्वों के प्रतिकूल प्रभाव पड़ने पर व्यक्ति के
मस्तिष्क का, उसके शरीर का संतुलन बिगड़ सकता हैं, उसे चिंताएं अधिक बढ़ जाती हैं.
उनका स्वास्थ्य अधिकतर ख़राब रहता हैं. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT कैसा हो वास्तु सम्मत दक्षिण मुखी घर ...
वास्तुशास्त्र और पांच तत्वों का सम्बन्ध |
4.शास्त्रों के अनुसार इन पांच तत्वों के अनुरूप यदि मनुष्य
कार्य करता हैं तो इन तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता हैं और व्यक्ति को भूकंप,
बाढ़ तथा अग्निकांड का सामना करना पड़ता हैं.
उपरोक्त बताये गए पांच तत्वों के दूषित प्रभाव से बचने के लिए यह आवश्यक हैं
कि हम इन पांच तत्वों का ध्यान रखकर ही जीवन निर्वाह करें और अपने घरों में
इन पांच तत्वों का विशेष ध्यान रखें. क्योंकि यदि किसी भी व्यक्ति के घर में इन
पांच तत्वों का संतुलन बिगड़ जाएँ तो आप अपने घर में सुख – शांति पूर्वक जीवन
निर्वाह नहीं कर पायेंगे.
पांच तत्वों का वास्तु से संबंध (Connection Between Vastushastra And
Five Elements)
1.पृथ्वी (Earth) – पृथ्वी को पांच तत्वों में
सबसे पहला स्थान दिया जाता हैं. इसकी गणना सूर्यमंडल के नौ ग्रहों में
की जाती हैं. ऐसा माना जाता हैं कि पृथ्वी तथा अन्य नौ ग्रहों का निर्माण
सूर्य के टुकड़ों से हुआ हैं. जब सूर्य के विभिन्न टुकड़े हो गए तो उनका रूप इन
ग्रहों ने धारण कर लिया था तथा ग्रह का रूप धारण करने के बाद ये सभी ग्रह सूर्य
की परिक्रमा करने लगे और धीरे – धीरे सूर्य से दूर हो गएँ. जिनमें से एक
पृथ्वी भी थीं. सूर्य से दूर होने के बाद पृथ्वी ठंडी हो गई. जिसके कारण ही
पृथ्वी पर नदि, पर्वत तथा अन्य खुले क्षेत्रों और प्राकृतिक स्थानों का निर्माण
हुआ. पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा अपने अंश पर 23 डिग्री झुक कर करती हैं.
पृथ्वी पर पानी, ध्रुवीय तरंगे और गुरुत्वाकर्षण शक्ति विद्यमान हैं. जिनका
प्रभाव समस्त पृथ्वी पर रहने वाले व्यक्तियों और जीव – जंतुओं पर पड़ता हैं. शास्त्रों
में पृथ्वी को जीवनदायी और पालनहार कहा गया हैं. इसीलिए हर स्थान की भूमि
को व्यक्ति अपनी मातृभूमि मानता हैं.
पृथ्वी |
जब हम किसी भी भवन का निर्माण करते हैं तो उसके लिए सबसे आवश्यक
और प्रमुख तत्व भूमि ही होती हैं. जिसके आधार पर ही ईट, पत्थर और सीमेंट का
इस्तेमाल कर एक घर बनाया जाता हैं.
·
भूमि और वास्तु (Land and Architectural) – वास्तु शास्त्र में दक्षिण
पश्चिम दिशा की भूमि को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया हैं. क्योंकि यह दिशा ही
व्यक्ति को धनवान बना सकती हैं. वास्तु शास्त्र में केवल इसी दिशा को भूमि
के नाम से जाना जाता हैं और माना जाता हैं कि जिस घर की दक्षिण पश्चिम दिशा
जितनी ऊंचे स्थान पर होगी उस घर के स्वामी अर्थात मुखिया को भी उतना ही मान –
सम्मान और यश प्राप्त होगा. इसीलिए जब भी घर का निर्माण करवाएं तो उस घर की
दक्षिण पश्चिम दिशा ऊंची रखें.
2.
जल (Water) – जल पाँचों तत्वों में से
एक तत्व हैं. यह कहावत तो हम अक्सर अपने दैनिक जीवन में सुनते ही हैं कि “जल ही
जीवन हैं.” जो पूर्ण रूप से सच हैं. क्योंकि जल के बिना कोई भी व्यक्ति या
यह कहें की छोटे से छोटा जीव – जंतु जीवित नहीं रह सकता. विज्ञान के अनुसार
जल ही जीवन का आधार इसीलिए हैं क्योंकि जल में एक अंश प्राणवायु अर्थात
ऑक्सिजन का भी विद्यमान होता हैं. जिससे जब हम जल ग्रहण करते हैं तो यह
ऑक्सिजन हमारे शरीर के खून में मिल जाता हैं और फिर हमारे पुरे शरीर में संचारित
होता हैं. जिसके कारण ही हम जीवित रहते हैं.
वास्तुशास्त्र के नजरिये से यदि इस तत्व को देखा जाए तो इस
तत्व को पांच तत्वों में से मुख्य तत्व की श्रेणी में रखा जाना चाहिए.
Panchtatvon ke Pratikul Prabhav |
·
वास्तु के अनुसार जल का स्थान (Water Location
According to Vastushastra ) – वास्तुशास्त्र के अनुसार जल का स्थान हमेशा उत्तर पूर्व
दिशा में होना चाहिए. यदि घर में कुआँ हो या घर में जल के भंडारण की
व्यवस्था बनानी हो तो उसके लिए सबसे उत्तम दिशा उत्तर – पूर्व ही हैं. इस
दिशा में जल का भंडारण करने से घर के मुखिया को ख़ुशी व समृद्धि की प्राप्ति होती
हैं.
3.अग्नि (Fire) – अग्नि को पांच तत्वों में
से एक ऐसा तत्व माना जाता हैं जिससे मनुष्य को तथा पृथ्वी को ऊर्जा की प्राप्ति
होती हैं. ऐसा माना जाता हैं की बिना ऊर्जा के व्यक्ति का जीवन व्यर्थ हैं
तथा बिना ऊर्जा के व्यक्ति कोई भी कार्य नहीं कर सकता. पृथ्वी पर ऊर्जा का प्रमुख
और मूल स्त्रोत सूर्य को माना जाता हैं. उसकी तेज किरणों से ही व्यक्ति को
ऊर्जा प्राप्त होती हैं. ऊर्जा को किसी भी व्यक्ति के विशिष्ट गुणों में से एक
समझा जाता हैं. ऊर्जा की उत्पत्ति जब होती हैं. जब पर्यावरण में
उपस्थित धुल, वायु और आकाश के कण एक दुसरे की ओर आकर्षित होते हैं और फिर अलग –
अलग होकर बिखर जाते हैं. ऐसे ही इन कणों की फैलने और सिमटने की क्रिया
निरंतर चलती रहती जिससे ऊर्जा या अग्नि की उत्पत्ति होती हैं. ऊर्जा ही वह
आवश्यक तत्व हैं जिसके सहारे मनुष्य के शरीर में स्थित पाचन तंत्र भोजन को पचा
पाने में समर्थ हो पाता हैं. अग्नि एक ऐसा तत्व हैं मनुष्य जीवन को समृद्धि
देता हैं. लेकिन कुछ ही पलों में मनुष्य के जीवन का विनाश भी कर सकती हैं.
इसीलिए घर का निर्माण करवाते हुए इस तत्व की ओर भी विशेष ध्यान देना चाहिए.
Prakriti ke Panch Vishesh Tatv |
·
वास्तु शास्त्र में अग्नि का स्थान (The Location of
Fire in the House) – घरों में हमेशा अग्नि का प्रयोग रसोई घर में होता हैं
इसीलिए इस तत्व का सम्बन्ध रसोईघर से अधिक होता हैं. घर में रसोई घर का स्थान दक्षिण
पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए तथा जब भी खाना बनाने के लिए या और किसी कार्य
को करने के लिए अग्नि को जलाएं तो अपना मुख पूर्व दिशा की ओर कर लें.
वास्तुशास्त्र के अनुरूप इस दिशा में रसोई घर बनवाने से घर में सुख और समृद्धि
रहती हैं और घर के सभी सदस्यों का मन शांत रहता हैं.
4. वायु (Air) – मनुष्य के जीवन में वायु
का विशेष स्थान इसीलिए हैं क्योंकि वायु ही वह तत्व हैं जो मनुष्य के द्वारा ली
गई सांस के रूप में उसके शरीर में प्रवेश करती हैं और उसे जीवित रखती हैं.
वे के रूप में स्थित दो गैसे हाइड्रोजन और ऑक्सिजन बहुत ही महत्पूर्ण होती
हैं. अगर ये दोनों गैसे पृथ्वी पर न हो तो कोई भी मनुष्य या जीव – जंतु पृथ्वी पर जीवित
नहीं रह सकता. बल्कि इन दोनों गैसों के अनुपस्थिति से प्राकृतिक सम्पदा के रूप
में स्थित सभी पेड़ - पौधे नष्ट हो जायेंगे.
· वास्तु शास्त्र में वायु का स्थान (Air Location) – हर घर में वायु का प्रवेश
हो इसके लिए घरों में खिड़की और दरवाजे बनवाये जाते हैं. वास्तु शास्त्र के
अनुसार घर में वायु के प्रवेश हेतु खिड़की दरवाजों को हमेशा उत्तर – पश्चिम
दिशा की ओर होना चाहिए. इस दिशा में खिड़की दरवाजे लगवाने से आपके घर के स्वामी
का मन हमेशा खुश रहेगा तथा आपके व्यापार में ऊंटी होगी और आपको हमेशा अच्छे और
सच्चे दोस्त मिलेंगे. जो आपका हर सुख – दुःख की घडी में साथ देंगें.
5. आकाश (Sky) – आकाश पंचतत्वों का सबसे अंतिम तत्व हैं. आकाश
को ऊर्जा की तीव्रता, प्रकाश की लौकिक किरणों विद्युत तथा चुम्बकीय शक्तियों का
प्रतीक माना जाता हैं. आकाश के आकार का अंदाजा आज तक कोई मनुष्य नहीं लगा पाया.
क्योंकि आकाश अनंत व असीम हैं. यह ही वह विशेष तत्व हैं जिसमें सभी ग्रह
उपस्थित हैं और निरंतर परिक्रमा कर रहे हैं.
Panch Tatvon ka Mahatv |
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घर में आकाश का स्थान (The Location of
the Sky ) – वास्तु शास्त्र
में आकाश का स्थान भवन के बीच का स्थान माना गया हैं तथा यह कहा गया हैं कि
हर घर में उसके बीच का स्थान हमेशा खाली होना चाहिए. जिससे आसमान प्रत्यक्ष
रूप से दिखाई दे सके. घर के बीच के इस रिक्त स्थान को वास्तु शास्त्र में “
बहा स्थान” कहा गया हैं यह स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया हैं. इससे घर के
सभी सदस्यों के मन में धर्म एवं कर्म के कार्यों में रूचि बनी रहती हैं तथा घर
में भारी और कीमती वस्तुएं टिकी रहती हैं. उनका कभी क्षय नहीं होता. यदि आपका घर
छोटा हैं और आप अपने घर में बीचे के स्थान को खाली नहीं छोड़ सकते तो आप अपने घर
के बीच के स्थान को समतल बना सकते हैं. इससे भी आपके घर में आकाश तत्व का
विशेष प्रभाव पड़ेगा. और आपको लाभ होगा.
वास्तुशास्त्र में ग्रह दिशा तथा पांच तत्वों के स्थान के
बारे में अधिक जानने के लिए आप नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर सकते हैं.
Vastu Mein Panch Tatvon ka Sthan |
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