आयुर्वेदिक यकृतशोथ या
हेपेटाईटिस के प्रकार व् लक्षणानुरूप वर्ग निर्धारण
हेपेटाईटिस रोग को चार भागो
में बांटा गया है. इसके यह भाग इनके रोग क्षमता के आधार पर किये गए है. इनके भाग
होने का एक कारण और है वो है इनके विशेष वायरस के आक्रमण. इस रोग को ए , बी, तथा
नॉन ए और नॉन बी में बांटा गया है
आइये हम आपको इनके बारे में
ज़रा डिटेल में बताता है :
एक्यूट हेपेटाईटिस या तीव्र
यकृत शोथ ( हैपैटाईटिस ए ) एक्यूट यानि एकदम होने वाला
यह रोग हमें उस व्यक्ति से
लगेगा जो पहले से ही पीड़ित हो. या फिर हम ऐसा कह सकते है की संक्रमित व्यक्ति से
हम यह रोग लग सकता है. यदि हम संक्रमित
व्यक्ति के साथ भोजन करते है या उसका खाया हुआ खाना खा लेते है तो हम भी उस रोग की
चपेट में आ सकते है. इसमें संक्रमण मुख या नाख से होता है. यह रोग अपनी चपेट में
बच्चो और युवाओ को ही अक्सर लेता है, इस रोग की अवधि लगभग 6 महीने तक हो सकती है.
इस रोग में सबसे पहले बुखार के लक्षण होता कुछ दिन बुखार अगर रहता है तो यह पीलिया
में बदल जाता है. और यदि पीलिया कई दिन तक रहे तो यह हमारे यकृत में विकृति ला
सकता है. और इसके बाद यह ऐसा रूप धारण कर लेता है के रोगी के आस पास रहने वाले भी
इसी रोग की चपेट में आने शुरू हो जाते है. यह सब संक्रामक रूप होने के बाद ही हो
सकता है. अगर इस रोग का सही उपचार कर लिया जाये तो यह ठीक भी हो सकता है. गंभीर
बीमारी होने के बाद भी यदि सही उपचार मिले और परहेज रखा जाये तो कुछ ही समय में यह
रोग दूर किया जा सकता है. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
यकृतशोथ या हेपेटाईटिस रोग के कारण लक्षण और उपचार |
क्रानिक हैपैटाईटिस या
जीर्ण यकृत शोथ अर्थात क्रानिक या पुराना यकृत शोथ
यह रोग होने के भी कई कारण
हो सकते है. सबसे पहले तो इस रोग की पुष्टि जब होती है जब काफी समय बीत जाने के
बाद भी हेपेटाईटिस ए का उपचार ना हुआ हो.
या फिर दूसरा यह हो सकता है बुखार काफी लम्बी अवधि तक ठहर गया हो. इसके अलावा या
फिर किसी संक्रमित रोगी का खून हमें दिया गया हो, या फिर उसके इलाज में प्रयोग
किया गया इंजेकशन हमें दिया गया हो, इन सभी कारणों से हमें इस रोग के होने का पता
चलता है. इस रोग के होने से यकृत की कार्यविधि में बदलाव हो जाता है. और यदि यह
रोग लम्बे समय तक बना रहता है तो यह और भी जीर्ण हो जाता है इसी कारण इसे जीर्ण
यकृत शोथ भी कहते है. इसके परिवर्तनों का आधार पर इसके दो भाग किया जाते है जो इस
प्रकार है :
कोर्निक पैरीस्टंट
हेपेटाईटिस –
इस तरह की अवस्था के लिए कई
कारण हो सकते है, हेपेटाईटिस ए, बी, नॉन ए, या फिर नॉन बी, इनके ज्यादा अवधि तक
रहने से यकृत की यह हालत होती है, इसके लिए और भी कारण हो सकते है जैसे कि दवाओं
का लम्बे समय तक प्रयोग करना, और वो भी वृक्क व् कैसर की दवाएं. या फिर कोई
व्यक्ति कई सालों से लगातार शराब का सेवन कर रहा हो. इसके अलावा वायरस से संक्रमित
दोस्तों के संग उठाना बैठना हो. ये सभी कारण हो सकते है इस रोग को फ़ैलाने के लिए.
यह रोग ज्यादा घातक नहीं है फिर भी हमें सावधानीपूर्वक इसके उपचार करना चाहिए. और
साथ ही परहेज रखने चाहिए ताकि यह जल्दी से ठीक हो सके. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
Ayurvedic Remedy and Symptom for Chronic hepatitis |
कोर्निक एक्टिव हेपेटाईटिस
( हेपेटाईटिस बी )
कोर्निक पैरीस्टंट
हेपेटाईटिस रोग के लक्षण अगर 6 माह तक बने रहे और उपचार लेने से भी ठीक न हो तो
स्थिति बहुत ही गंभीर हो जाती है. यकृत में कड़ापन आकर यकृत काफी बड़ा हो जाता है.
इससे पीलिया की स्थिति हो सकती है. इससे रक्त में भी परिवर्तन होना शुरू हो जाता
है, और ये बदलाव होते होते कैसर जैसी बीमारी का भी रूप ले सकती है.
रोग निदान :
आयुर्वेद के अनुसार हमें रोग का उपचार करने से पहले उसके करने का पता कर लेना
चाहिए, क्योंकि अगर हमें रोग होने के कारणों का पता वहल जाता है तो उपचार में कोई
समस्या नहीं रहती और रोग का निवारण भी आसानी से हो जाता है. अगर रोगी को इस प्रकार
के लक्षण है तो उन्हे इलाज के समय जरुर बताये ताकि उपचार सही रोग का किया जा सके
और उसके लिए सही औषोधि भी इस्तेमाल की जा सके. यह लक्षण है जैसे – भोजन के प्रति
अरुचि, गैस, कब्ज, खट्टी डकार, जी मिचलाना, पेट के दाहिने हिस्से में तेज दर्द,
सिरदर्द, डिप्रेशन, खुजली, कम काम में ज्यादा थकान, बुखार इत्यादि का होना, अगर
ऐसा हो तो पहले बताएं.
रोग पश्चात लक्षण :
स्वस्थ शरीर रहने के लिए यकृत का स्वस्थ होना बहुत ही जरुरी है फिर यकृत पूरी
तरह स्वस्थ न होकर भी शरीर को स्वस्थ बनाने की कोशिश करता है और अगर यह प्रतिशत
केवल 10 भी हो तो भी. लेकिन अगर रोग की अवधी ज्यादा लम्बी हुयी तो फिर समस्या काफी
गंभीर हो सकती है. और कुछ लक्षण दिखाई देने लगेंगे या महसूस होने लगेंगे जो कि इस
प्रकार है :
समय बीत जाने के बाद यह
लक्षण यकृत या तिल्ली को बढ़ा देते है, खुजली भी होनी शुरू हो जाती है, पीलिया के
लक्षण भी हो सकते है. जलोदर या फिर यकृत कैसर की संभवना भी बन सकती है. अगर यकृत
की काम करने की शक्ति कम हो जाती है तो शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो
जाती है और ऐसी स्थिति में हमारे शरीर पर नए रोग होने का खतरा बना रहता है या फिर
नए रोग लग भी जाते है.
Yakratshoth ya Hepatitis B Rog ke karan Lakshan or Upchar |
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