प्रार्थना कक्ष का
वास्तु (
Vaastushastra for Prayer Room )
ईश्वर कण कण में हर
जगह विद्यमान है, सब उसमे और वो सबमे है फिर भी हम सब उन्हें बाहर खोजते रहते है.
अगर आप सच्चे श्रद्धाभाव से उन्हें याद करें तो वे आपको आपके अंदर ही दर्शन दे
देते है, अर्थात ईश्वर को पाने का सबसे अच्छा तरीका आपका उनपर विश्वास और आपकी
श्रद्धा ही है. लेकिन ईश्वर को याद करने के लिए हर समुदाय के हर घर में पूजा घर
जरुर होता है. ये पूजाघर आपकी, मेरी या हर पूजा करने वाले व्यक्ति की आस्था का
प्रतिक होती है जो उन्हें ईश्वर से जोड़े रखने का एक माध्यम होता है. अगर घर
में पूजाघर ना हो तो कोई ईश्वर को बिना मुसीबत आये याद भी ना करें, लेकिन घर में
पूजाघर के होने से उस घर के व्यक्ति प्रतिदिन, चाहे समय अच्छा हो या बुरा ईश्वर को
नमन अवश्य करते है और उन्हें याद भी करते है. CLICK HERE TO KNOW ड्राइंग रूम का वास्तु विज्ञान ...
Vaastu ki Nazar mein Poojaghar |
इसके अलावा आप पूजाघर
को एक संवाद कक्ष के रूप में भी देख सकते हो, क्योकि एक यही स्थान होता है
जहाँ हम परमात्मा से बातचीत करने की कोशिश करते है. साथ ही ये एक ऐसा स्थान होता
है जहाँ आप आंतरिक शान्ति चैन और सुख को अनुभव कर पाते हो. किन्तु क्या आपका
पूजाघर सही दिशा में सही वास्तु से बना है? क्या आपके ईश्वर तक आपकी बात पहुँच पा
रही है? क्या वो आपसे खुश है या आपसे क्रोधित है?. हम आपको डरा नही रहे है बल्कि
आपको ये समझाने की कोशिश कर रहे है कि आपको पूजा घर के निर्माण करते वक़्त सही
वास्तु सिद्धांतों का इस्तेमाल करना चाहियें. ऐसे ही कुछ सिद्धांत नीचे लिखे है
जिन्हें आप मंदिर निर्माण से पहले अवश्य जान लें.
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मंदिर
और देवी देवता की तस्वीर दिशा ( Direction for Deities’ Pictures ) : वास्तुशास्त्र के अनुसार पूजाघर के मुख की दिशा हमेशा ईशान कोण में ही
होनी चाहियें, जबकि मंदिर में देवी देवताओं की तस्वीर पश्चिम दिशा की तरफ हो तो
शुभ माना जाता है. देवी देवताओं की तस्वीर लगाते वक़्त आपको इस बात का ख़ास ध्यान
रखना चाहियें कि किसी भी देवी देवता की तस्वीर एक दुसरे के ठीक सामने ना हो. साथ
ही मंदिर में कभी खंडित मूर्ति ना रखें. अगर कोई मूर्ति खंडित हो भी जाती है तो आप
उसे बहते पानी में प्रवाहित कर दें. CLICK HERE TO KNOW कैसा और कहाँ हो भवन का वास्तु ...
वास्तु की नजर में पूजाघर |
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पूजाघर
का रंग ( Wall
Paint for Temple ) : चाहे देवियों को सजाने का सामान हो या फिर तिलक
के लिए रोली पूजाघर में अधिकतर लाल रंग का इस्तेमाल किया जाता है. किन्तु
अगर आप घर में बनाएं मंदिर में पिला रंग इस्तेमाल करते हो तो इसे और भी अधिक
लाभकारी माना जाता है. इसलिए आप मंदिर में बिछाने के लिए और मंदिर की दीवारों पर
भी पिला रंग ही इस्तेमाल करें. आप चाहे तो इसके लिए गेरुआ रंग भी प्रयोग में ला
सकते हो.
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पूजाघर
का दीपक (
Importance of Lit in Temple ) : पूजा में दीपक भी आस्था का ही प्रतिक होता है और
ये माना जाता है कि जिस तरह दीपक की ज्योत अन्धकार का नाश कर चारों तरफ रोशनी को
प्रसारित करती है उसी तरह मनुष्य के अंदर आस्था के दीपक की ज्योति प्रजवलित होकर
अंदर के अंधकार को मिटा जाए और मनुष्य परमार्थ के मार्ग पर चल सके. इसलिए जब भी आप
पूजाघर मे दीपक जलाएं तो उसे भगवान की मूर्त के सामने एक थाली में रखे. साथ ही
ध्यान रखे कि दीपक दरवाजे में रखा हो. हमेशा दीपक में 2 बत्तियों को प्रजवलित
करें, जो पूर्वमुखी और पश्चिममुखी हो.
Architectural Tips for Prayer Room |
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पूजाघर
का दरवाजा (
Direction for Door ) : हर मंदिर में एक दरवाज और खिड़कियाँ अवश्य होती
है. पूजाघर के दरवाजों के लिए हमेशा उत्तर दिशा या पूर्व दिशा का ही चुनाव करें,
साथ ही दरवाजे लकड़ी के ही बने होंने चाहियें.
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पूजाघर
में यंत्र (
Yantra in Temple ) : मंदिरों में आजकल यन्त्र का इस्तेमाल अधिक किया
जाता है. जैसेकि श्री यन्त्र, कुबेर यन्त्र, दक्षिणवर्ती शंख या व्यापर वृद्धि
यन्त्र इत्यादि. अगर आप भी इनका इस्तेमाल करना चाहते हो तो इन्हें अखंडित चावलों
पर ही रखें. साथ ही हर पूर्णिमा के दिन इन चावलों के स्थान पर नए चावल रख दें.
पुराने चावलों को आप बहते पानी में प्रवाहित कर दें.
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पूजाघर
में पूजा ( Prayer
in Prayer House ) : जब आप पूजा करें तो अपना मुंह पूर्व दिशा की तरफ
रखें और पूजा में दीपक, धुप और अगरबत्ती का इस्तेमाल करना बिलकुल न भूलें. पूजा के
लिए हमेशा आलती पालती लगाकर नीचे किसी आसन पर बैठें और आँखे बंद करके ईश्वर की
आरती, पूजा व प्रार्थना करें. अगर आप हवन कुंड का इस्तेमाल करते है तो उसे दक्षिण
पूर्व कोण में रखें.
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पूजा
में जल (
Importance of Water in Temple ) : पूजा में जल भी एक
अहम स्थान रखता है खासतौर पर गंगाजल. अगर आप पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त करना
चाहते हो तो जल चढाने के लिए ताम्बे के पात्र का इस्तेमाल करें और जब आप पूजा करें
तो पात्र को पहले अपने माथे पर अवश्य लगायें फिर थोडा जल अपने बैठने के स्थान पर
डालें. अगर आप गंगाजल का इस्तेमाल कर रहे है तो उसके लिए दक्षिणमुखी शंख में रखा
पानी सर्वश्रेष्ठ माना जाता है.
Pooja ke Kamre ka Vaastu |
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ये ना
हो ( Don’t Do
These ) : क्योकि पूजा स्थल एक पवित्र स्थान है तो इस बात
का ध्यान रखें कि पूजास्थल के ऊपर या फिर नीचे कोई शौचालय ना हो. इसके अलावा आप
आने शयनकक्ष में कभी भी मंदिर का निर्माण ना करवायें. साथ ही घर में स्थापित किये
गए पूजाघर में कभी भी गुंबज नही बनाया जाता और ना ही मंदिर में कलश स्थापित किया
जाता है. आप पूजाघर में कभी गहने या जवाहरात भी ना रखें. कुछ लोग पूजाघर में अपने
पूर्वजों की मूर्ति भी रख देते है जो गलत है. ऐसे भी न करें.
मंदिर निर्माण या
स्थापना के समय इन वास्तु सिद्धांतों को ध्यान में रखने से आपके घर में हमेशा सुख
समृद्धि बनी रहती है और जीवन में संपन्नता और खुशहाली का वास होता है. मंदिर
स्थापना के बाद आप ईश्वर को सच्चे मन से याद करें और उनकी असीम कृपा और आशीर्वाद
के भागी बनें.
मंदिर निर्माण या
पूजास्थल से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों और वास्तु सिद्धांतों को जानने के लिए आप
तुरंत नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर सकते हो.
Vasstu Tips for Prayer Room in Hindi |
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