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Jagannath Rathyatra | जगन्नाथ रथयात्रा

जगन्नाथ रथयात्रा (Jagannath rathyatra)
भारत में मनाये जाने वाले अन्य प्रमुख त्यौहारों की भांति ही जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव बहुत ही विशेष तथा महत्वपूर्ण होती हैं. जगन्नाथ रथयात्रा ओडिशा में स्थित पुरी के मंदिर से निकाली जाती हैं. इस यात्रा में विष्णु के दसों अवतारों की पूजा की जाती हैं. इस यात्रा में सम्मिलित होने के लिए भारत तथा विदेशों से भारी मात्रा में लोग एकत्रित होते हैं.

जगन्नाथ रथयात्रा की तैयारी (Jagannath Rathyatra’s Prepration)
जगन्नाथ रथयात्रा दस दिनों का महोत्सव होता हैं. इस दस दिवसीय महोत्सव की शुरुआत पुरी के मंदिर में अक्षय तृतीया के दिन से ही हो जाती हैं. इस यात्रा में तीन भगवानों की यात्रा मुख्य रूप से निकाली जाती हैं. कृष्ण, कृष्ण के भाई बलराम तथा उनकी बहन सुभद्रा. अक्षय  तृतीया के दिन से ही इन तीनों भगवानो के रथों का निर्माण होना शुरू हो जाता हैं. इन रथों का निर्माण किसी धातु से न होकर केवल लकड़ियों से होता हैं. इसमें धातु के नाम पर एक कील का भी प्रयोग करना वर्जित होता हैं. रथयात्रा निकालने के लिए इन रथों पर भगवान् की प्रतिमा देवी – देवताओं की आकर्तियों की न बनाकर आदिवासी मनुष्य की भांति बनाई जाती हैं. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT होली खुशियों का त्यौहार ...
Jagannath Rathyatra
Jagannath Rathyatra


पूरी के मंदिर में रथ के निर्माण के साथ – साथ कुछ धार्मिक अनुष्ठान भी शुरू हो जाते हैं. जगन्नाथ रथयात्रा में कृष्ण, बलराम तथा सुभद्रा के रथ को अलग – अलग नामों से जाना जाता हैं तथा इन्हें भिन्न प्रकार से सजाया जाता हैं. इन रथों की जानकारी नीचे दी गई हैं –

1.       गरुड़ध्वज – जगन्नाथ रथयात्रा का पहला रथ गरुडध्वज या कपिलवस्तु के नाम से जाना जाता हैं. यह कृष्ण का रथ हैं. इस रथ का निर्माण 16 पहियों को लगाकर किया जाता हैं तथा यह 13.5 मीटर ऊंचा होता हैं. इस रथ में ज्यादातर लाल और पीले रंग के कपडे का प्रयोग किया जाता हैं. इस रथ का नाम गरुड़ध्वज इसलिए रखा गया हैं. क्योंकि पुरी के लोगों की यह मान्यता हैं कि विष्णु जी का वाहक इस रथ की रक्षा करता हैं. इस रथ पर एक ध्वज भी लगाया जाता हैं जिसे “ त्रैलोक्यामोहिनी ” के नाम से जाना जाता हैं.

2.       तालध्वज – जगन्नाथ रथयात्रा का दूसरा रथ तालध्वज कहलाता हैं. इसकी ऊंचाई लगभग 13.2 मीटर होती हैं. यह 14 पहियों का होता हैं. इसका निर्माण लाल, हरे रंग के कपडे से तथा लकड़ी के 763 टुकड़ों का प्रयोग करके किया जाता हैं. इस रथ पर लगे हुए ध्वज को “उनानी” कहते हैं. इस रथ के रक्षक वासुदेव तथा उनके सारथि मताली होते हैं. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT पोंगल किसानों का त्यौहार ...
 जगन्नाथ रथयात्रा
 जगन्नाथ रथयात्रा

3.       प्झ्मध्वज या दर्पदलन – यह रथ कृष्ण जी की बहन सुभद्रा का हैं. यह रथ 12.9 मीटर ऊंचा होता हैं तथा इसमें 12 पहिए लगे होते हैं. इस रथ का निर्माण करने में 593 लकड़ियों के टुकड़ों का प्रयोग किया जाता हैं. इसका ध्वज “ नंदबिक ” के नाम से जाना जाता हैं. इस रथ की रक्षा जयदुर्गा तथा अर्जुन करते हैं. जिस रस्सी से इस रथ को खिंचा जाता हैं उसे स्वर्णचुडा कहते हैं.

जगन्नाथ रथयात्रा की शुरुआत तथा समाप्ति  
ओड़िसा के पूरी मदिर से विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितय तिथि को निकाली जाती हैं. जग्न्नाथ रथयात्रा निकालने के लिए प्राचीन राजा – महाराजाओं की परम्परा का अनुसरण किया जाता हैं तथा सोने के हत्थे वाली झाड़ू से रथयात्रा वाले मार्ग को साफ किया जाता हैं तथा उसके बाद मन्त्रों का उच्चारण करते हुए तथा तीनों भगवानों की जयजयकार के साथ रथयात्रा को इस मार्ग से निकाला जाता हैं. कृष्ण, बलराम तथा सुभद्रा तीनों भगवानों के रथों को मोटी – मोटी रस्सियों से खींचते हुए क्रम से निकाला जाता हैं. पहले बलराम जी के रथ को निकला जाता हैं फिर सुभद्रा के रथ को तथा अंत में भगवान जगन्नाथ अर्थात श्री कृष्ण जी को निकला जाता हैं. इस रथयात्रा में भीड़ होने के बावजूद सभी श्रद्धालु को तीनों रथों पर विराजमान भगवान के स्पष्ट रूप से दर्शन हो जाते हैं. जगन्नाथ यात्रा के इन तीनों रथों को खींचने के लिए सभी श्रद्धालु बहुत ही उत्साहित होते हैं.

जगनाथ रथयात्रा को पूरी के मंदिर से निकालते हुए आस – पास के स्थानों पर भ्रमण किया जाता हैं तथा अंत में इसे गुड़ीचा के मंदिर में ले जाया जाता हैं. इस स्थान पर पहुंचने के बाद के एक सप्ताह जगन्नाथ रथयात्रा पर विराजमान तीनों भगवानों की प्रतिमाओं को इस मंदिर में रखा जाता हैं तथा उनकी पूजा – अर्चना की जाती हैं.

बाहुड़ा यात्रा (Baahuda Yatra)
गुड़ीचा मंदिर से जगन्नाथ रथयात्रा की वापसी यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहते हैं. यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दसमी तिथि से शुरू होती हैं तथा वापिस ओडिशा के पुरी मंदिर पर जाकर समाप्त होती हैं. बाहुड़ा यात्रा के समाप्त होने के बाद पुरी के मंदिर में कृष्ण, बलराम तथा सुभद्रा तीनों की प्रतिमाओं को श्रद्धालुओं के दर्शन करने के लिए रथों में ही रहने दिया जाता हैं. अगले दिन इन प्रतिमाओं को इनके स्थान पर मंत्रोच्चार के साथ वापिस स्थापित कर दिया जाता हैं.
Baahuda Yatra
Baahuda Yatra
  

जीवन यात्रा की प्रतीक जगन्नाथ रथयात्रा
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार जगन्नाथ रथयात्रा में सम्मिलित होने वाले प्राणियों को इस यात्रा का पुण्य 100 याज्ञों के समान मिलता हैं. जगन्नाथ रथयात्रा मानव जीवन की यात्रा का प्रतीक रूप माना जाता हैं.

ऐसा भी माना जाता हैं कि जगन्नाथ रथयात्रा के इन तीनों रथों का निर्माण व्यक्ति अपनी बुद्धि, चित्त तथा अहंकार से करता हैं. जिस रथ रूपी शरीर में आत्मा रुपी भगवान विराजित होते हैं. इस प्रकार यह रथयात्रा शरीर और आत्मा के मिलन की ओर संकेत करती हैं तथा मनुष्य को आत्मदृष्टि बनाए रखने की प्रेरणा देती हैं.

जगन्नाथ रथयात्रा और रथ निर्माण के बारे में अधिक जानने के लिए आप तुरंत नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर सकते है.
Jagannath Rathyatra ki Shuruaat
Jagannath Rathyatra ki Shuruaat 
  

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