हठ योग (Hatha Yoga)
जो योग बलपूर्वक, जबरदस्ती, अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग कर किया जाता हैं
उसे “हठ योग” कहते हैं. हठ का पर्यायवाची शब्द जिद्द हैं. इसलिए इस
शब्द के साथ जबरदस्ती शब्द को जोड़ दिया जाता हैं. लेकिन जब हठ शब्द के साथ योग
को जोड़ दिया जाता हैं. तो इस शब्द को एक आध्यात्मिक आधार मिल जाता हैं.
हठ योग का अर्थ (Meaning of Hatahayoga)
हठ शब्द दो शब्दों के युग्म से मिलकर बना हैं. “ह” हकार
अर्थात दायाँ नासिका स्वर तथा “ठ” ठकार अर्थात बायाँ नासिका स्वर,
जिसे “इडा नाडी” कहा जाता हैं. CLICK HERE TO READ MORE ABOUT मन की शांति के लिए त्राटक योगासन उपाय ...
Hatha Yoga V Unke Prakar |
इन दोनों स्वरों का जब योग बनता हैं तब यह संधि हठ योग कहलाती हैं. इस प्रकार हठ योग वह योग
हैं. जिसमें “हठ और योग की संधि से बीच का स्वर या सुषुमन नाडी में प्राण का
आवागमन होकर कुंडलिनी शक्ति और चक्रों का जागरण होता हैं.” इस योग से मनुष्य
के शरीर में स्थित अनेकों रहस्यों के भेद खूल जाते हैं और साधक अध्यात्म
के मार्ग की ओर अग्रसर हो जाता हैं.
हठ योग साधना क्या हैं? (What is Hatha yoga Sadhan)
हठ योग साधना वैज्ञानिक पद्धति से जुडी वह साधना हैं. जिसका प्रयोग
करने से व्यक्ति का शरीर, प्राण और मन हमेशा स्वस्थ रहता हैं. इस साधना के
बहुत से लाभ हैं जिसकी जानकारी नीचे दी गई हैं –
हठ योग साधना के लाभ (Benefits of Hatha yoga Sadhana)
1.हठयोग साधना को निरंतर करने से व्यक्ति के शरीर की प्राण
ऊर्जा का विकास होता हैं.
2.इस साधना को नियमित रूप से करने वाला व्यक्ति हमेशा
बिमारियों से बचा रहता हैं.
हठयोग के सात अंग (Seven Types of Hath yoga)
हठ योग साधना के बारे में
वर्णन बहुत से ग्रंथों में किया गया हैं. लेकिन इसका मूल रूप से और विस्तार पूर्वक
वर्णन “हठयोग प्रदीपिका” और “घेरंड
सहिंता” में मिलता हैं.
घेरंड सहिंता में ही इस योग
के सात अंगों का वर्णन किया गया हैं. जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं –
1.
षट्कर्म
2.
आसन
3.
मुदा
4.
प्रत्याहार
5.
प्राणायाम
6.
ध्यान
हठ योग व उनके प्रकार |
विभिन्न क्रियाएँ (Various Activities)
1.षट्कर्म (Shatkarma)– हठयोग में षट्कर्म साधना
बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. क्योंकि इसी साधना से ही व्यक्ति अपने शरीर को निरोग
रख सकता हैं तथा इसी साधना से व्यक्ति के शरीर की शुद्धि होती हैं. षट्कर्म
साधना करने से व्यक्ति के शरीर से विजातीय तत्व, दूषित पदार्थ तथा मल को बाहर
निकल जाता हैं. जिससे व्यक्ति का शरीर हमेशा निरोग पूर्ण रहता हैं. यदि किसी
व्यक्ति को पित्त, कफ की शिकायत हो तो वह इस साधना से इन बिमारियों को दूर
कर सकता हैं.
षट्कर्म योग में ही शरीर शोधन के छह साधनों
का विवेचन किया गया हैं. जिनकी जानकारी नीचे दी गई हैं
1.धौती क्रिया (Dhouti Kriya)– धौति क्रिया को करते समय
अपने दोनों होठों को सिकोंड लें और हवा को धीरे – धीरे पानी की भांति
अपने पेट में ले जाएँ. अब हवा को अपने पेट में चारों ओर घुमाएँ. इसके
बाद नाक से अपने शरीर की वायु को बाहर निकाल दें. एक प्रकार से आपको अपना मुंह
कौवें की चोंच की भांति बना लेना हैं. यह क्रिया ही “वातसार धौति क्रिया”
कहलाती हैं.
फायदे (Benefits) –
·
इस क्रिया को करने से आपके शरीर के सभी रोग ख़त्म हो
जायेंगे.
·
यदि आपको भूख कम लगती हैं तो आपकी भूख बढ़ जाती हैं.
·
इस क्रिया के प्रयोग से आपको पेट से सम्बन्धित सभी रोगों
से मुक्ति मिल जाती हैं.
इस क्रिया को कम से कम 5 या 6 मिनट तक बार – बार करें. इसके साथ ही इस
योग को करते समय बीच – बीच में एक गिलास पानी पी लें. इस क्रिया के साथ ही
आप ताड़ासन, ऊधर्वहस्तोत्तानासन, कटिचक्रासन, तिर्यक, भुजंगासन तथा उदराकर्षण
को कर सकते हैं.
Hathyog Sadhana |
2.बस्ती क्रिया (Basti Kriya) – बस्ती क्रिया दो प्रकार
की होती हैं. जिनका विवरण नीचे दिया गया हैं.
·
जल बस्ती (Jal Basti) – इस क्रिया को करने के लिए एक बड़े बर्तन में
नाभि तक पानी भरकर बैठ जाएँ या किसी तलाब या नदी में उत्कटासन की
मुद्रा में बैठ जाएँ.
·
इसके बाद गूदा का आंकुचन करके जल को अंदर की ओर जाने
दें. इस क्रिया को करने से पानी आपकी आंत के अंदर चला जाएगा और वहाँ से
मल को बाहर निकाल देगा.
·
इसके बाद गुदामार्ग से जल को बाहर निकाल दें.
इस प्रकार की क्रिया “बस्ति क्रिया” कहलाती हैं. इस क्रिया को करने के
बाद आपको यदि प्रमेह, उदावर्तरोग, कुपित वायु जैसे रोग हैं तो आपको इन रोगों से
मुक्ति मिल जायेगी.
इस क्रिया को करने का एक और लाभ यह हैं कि आपको गुल्म, प्लीहा, उदर,
वात, पित्त, कफ आदि रोगों से भी मुक्ति मिल जायेगी.
·
स्थल बस्ति (पवन बस्ति) (Sthal basti)– इस क्रिया को करने के लिए जमीन
पर पश्चिमोत्तान होकर लेट जाएँ. इसके बाद धीरे – धीरे अश्विनी मुद्रा में
आये और गुदामार्ग का आंकुचन तथा प्रसारण करें. इस क्रिया को करने से आपके शरीर
के अंदर की सारी वायु बाहर निकल जायेगी. शरीर से वायु बाहर निकलने की यह
क्रिया ही “स्थल बस्ति क्रिया” कहलाती हैं.
इस क्रिया को करने से आपको आमवात आदि रोगों से हमेशा के लिए छुटकारा
मिल जाता हैं. उदरस्थ विकारों से भी राहत मिल जाती हैं और भूख खुल जाती
हैं.
नेति क्रिया (Neti Kriya) – नेति क्रिया के भी दो प्रकार हैं. जिनका विवेचन नीचे किया
गया हैं –
1.सूत्र नेति (Sutra Neti) – सूत्र नेति हमेशा खाली
पेट करें. क्योंकि घेरंड सहिंता में इसका उल्लेख किया गया हैं. इस क्रिया को
करने के लिए एक विशेष प्रकार के बलिष्ट से बने हुए लम्बे सूत्र का प्रयोग किया
जाता हैं. इस क्रिया में जो स्वर चल रहा होता हैं उस नासारंध्र में इस
सूत्र को एक विधि का अनुसार करते हुए डाला जाता हैं और फिर इस सूत्र
को मुंह से निकाला जाता हैं. यह क्रिया ही “नेतिक्रिया” कहलाती हैं.
Sutra Neti |
2.जल नेति (Jal Neti) – इस क्रिया को सुबह के
समय में किया जाता हैं. इस क्रिया को करने के लिए एक विशेष प्रकार के
टोंटीदार लोटे का प्रयोग किया जाता हैं. इस लोटे में हल्का गर्म पानी
करकर उसमें थोडा नमक मिलाकर डाला जाता हैं. इसके बाद कागासन की अवस्था
में बैठा जाता हैं और जो स्वर चल रहा होता हैं. उसमें लोटे की टोंटी का मुख
लगाकर पानी डाला जाता हैं. इसके बाद अपनी गर्दन को थोडा झुका लिए जाता हैं
और सांस को अंदर बाहर करते हुए पानी को दूसरी नाक के छिद्र से बाहर निकला जाता
हैं. इसी क्रिया को दुबारा नाक के दुसरे छिद्र से किया जाता हैं. इस
प्रकार की जाने वाली क्रिया “जल नेति क्रिया” कहलाती हैं.
3.नौली क्रिया (Nouli Kriya) – इस क्रिया को करने के लिए शौच
आदि से निवर्त होने के बाद इस क्रिया को खाली पेट करें. इस क्रिया को
करने के लिए अपने दोनों पैरों को खोलकर खड़े हो जाएँ, घुटनों को थोडा सा
मोड़ लें, अपनी दोनों जांघों पर हाथ रखें, शरीर से सारी हवा बाहर
निकालने के बाद अपने पेट को सिंकोड़ लें. इसके बाद अपने दोनों हाथों पर थोडा बल
डालें और अपने पेट की पेशियों को बाहर की ओर निकाल दें. अब अपनी पेट की
पेशियों को हाथों पर जोर डालते हुए बाएं से दायें तथा दायें से बायीं ओर
घुमाएं. यह क्रिया “नौली क्रिया” कहलाती हैं.
इस क्रिया को करने यह फायदा होता हैं कि इससे आपके पेट की बीमारियां समाप्त
हो जाती हैं और जठराग्नि प्रज्वलित होती हैं.
Nouli Kriya |
त्राटक क्रिया (Tratak Kriya)
त्राटक शब्द की उत्पत्ति ‘त्रि” और “टकी बंधने” की संधि से हुई हैं. लेकिन त्राटक मूल रूप से
एक शुद्ध शब्द नहीं हैं इसका शुद्ध रूप “त्र्याटक” हैं. त्र्याटक शब्द के
लिए संस्कृत भाषा में इस पंक्ति का प्रयोग किया जाता हैं.
पंक्ति (Line) –
“ त्रिवारं
आसमंतात टंकयति इति त्राटकम”
इस पंक्ति का अर्थ यह हैं कि जब कोई व्यक्ति अपनी नजर और मन को किसी एक
वस्तु पर बांधे रखता हैं. तो वह क्रिया त्र्याटक क्रिया कहलाती हैं.
इसी शब्द को आगे चलकर त्राटक के रूप में जाना जाने लगा. समान्य रूप से जब हम एक
चीज को लगातार देखते रहते हैं तो यह क्रिया एकटक क्रिया कहलाती हैं. उसी वस्तु
को जब हम कुछ देर तक अपना ध्यान केन्द्रित करके देखते रहते हैं तो यह
क्रिया द्वाटक कहलाती हैं. इसी कर्म में जब हम एक वस्तु को दीर्घकाल तक
अर्थात अत्यधिक देरी तक देखते रहते हैं तो यह क्रिया त्राटक या त्र्याटक कहलाती
हैं. इस क्रिया का वर्णन हठयोग के अंतर्गत दृष्टि को जगाने की शक्ति के रूप
में किया जाता हैं.
Tratak Yoga |
कपालभाती (Kapalbhati)
कपालभाती का अर्थ (Meaning of Kapalbhati) – मनुष्य के मष्तिष्क के
सामने वाला भाग कपाल कहलाता हैं. ऐसे ही भांति का अर्थ हाँ वह वस्तु जो
प्रकाशित करती हैं या चमका देती हैं.
कपालभाती क्या हैं (What is Kapalbhati)
जब कोई व्यक्ति अपने मस्तिष्क के सभी विकारों का शमन करने के लिए लौहार की
धौंकनी की भांति अपनी सांस को बार – बार बाहर तथा अंदर करता हैं तो यह क्रिया
कपालभाती कहलाती हैं. माना जाता हैं कि इसमें हर सांस अपने आप ही अंदर और बाहर
जाती हैं.
कपालभाती के तीन भेद (Three Types of Kapalbhati)
1.
वातकर्म कपालभाती (Watkarm Kapalbhati)– इस क्रिया में व्यक्ति
बिल्कुल सीधा बैठता हैं और अपने हाथों को प्रणायाम की अवस्था में रखकर
अपनी एक नाक को बंद कर लेता हैं और दूसरी नाक से हवा को अंदर खींचता हैं और
तुरंत दूसरी नाक को बंद करके पहले नाक से हवा को बाहर निकलता हैं. इसी कर्म को
लगातार दोहराना ही “वातकर्म कपालभाती क्रिया” कहलाती हैं. इस क्रिया को
करने से व्यक्ति को कभी कफ की शिकायत नहीं होती.
Kpalbhati |
2.व्युत्क्रम कपालभाती (Vyutkram Kapalbhati)– इस क्रिया में हल्का गुनगुना
पानी लिया जाता हैं और उसे नाक में डालकर मुंह से निकला जाता हैं. इस क्रिया
को करने से भी व्यक्ति को कफ की बीमारी नहीं होती.
3.
शीतकर्म कपालभाती (Shitkrama
Kapalbhati)– इस क्रिया में मुंह से सीत्कार की आवाज की जाती हैं और पानी को
मुंह में भर लिया जाता हैं. इसके बाद इस पानी को नाक से बाहर निकाला जाता
हैं. इस क्रिया को करने का फायदा यह हैं कि आप हमेशा सुन्दर और आकर्षक
दिखाते हैं. कफ का रोग आपसे दूर रहता हैं और आपको जल्दी बुढापे का सामना
नहीं करना पड़ता.
हठ योग तथा योगासनों के बारे में अधिक जानने के लिए आप नीचे
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- सोने के तरीके से जाने तक़दीर
Purn yog ki kitab chahiye vo milsakti hai milti hai to 9427871043 ye no per call karo jai gurudev
ReplyDeleteThanks
ReplyDeletevery good information but i want to know more about aasana etc other feature
ReplyDeleteSakti path kaha hota hai me janna chahta hundreds.
ReplyDeleteHathyogi ke lakshan kya hote h ???
ReplyDeleteHathyog ke aango ko vistar se btaye
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