एकलव्य ( Aklavya )
भील पुत्र एकलव्य के बारे
में अधिकतर लोगों ने सूना होगा, वे भी कर्ण और अर्जुन की ही तरह एक महान धनुर्धर और युद्ध थे, लेकिन फिर भी वे महाभारत का सिर्फ एक ऐसा हिस्सा बनकर रह गए जिसे अनेक लोग
भूल जाते थे. जहाँ एकलव्य साहसी थे वहीँ उनका त्याग और कथा बहुत मार्मिक है,
अगर आप महाभारत को ध्यान से पढों तो उसमें जिन जिन पात्रों ने
सदाचार और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए कहा वे सब ही एकलव्य के लिए क्रूर बन गए. CLICK HERE TO KNOW श्री कृष्ण की भविष्यवाणी हो रही है सच ...
Aeklavya ka Vadh Kyo Kiya Shree Krishna Ne |
अगर आपने एकलव्य के बारे
में पढ़ा है तो आप ये भी जानते होंगे कि उन्होंने अपने अपने सीधे हाथ का अंगूठा दान
में दे दिया था और ऐसा उन्होंने द्रोणाचार्य के कहने पर किया था क्योकि वे अपने
शिष्य अर्जुन दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धन बनाना चाहते थे. द्रोणाचार्य को पता
चल गया था कि एल्कव्य के होते हुए उनकी इच्छा कभी पूरी नहीं होगी इसलिए उन्होंने
एकलव्य से उनका अंगूठा ही मांग लिया ताकि वो बाण संधान ही न कर सके. इस तरह देखा
जाए एकलव्य का सबसे बड़ा गुण ही उसका शत्रु बन गया.
क्यों था एकलव्य को धुनष
बाण से प्रेम ( Why Aklavya Loves
Archery ) :
एकलव्य एक शिकारी के बेटे
थे और वे बचपन से ही एक धर्नुधर बनने के सपने देखते थे इसीलिए उन्हें धनुर विद्या
से इतना प्रेम था. अपने प्रेम के चलते ही वे एक दिन लकड़ी के धनुष से खेल रहे थे और
निशाना लगा रहे थे कि तभी मुनि पुलक जी की दृष्टि उनपर पड़ी. मुनि उनके आत्मविश्वास
को देखकर चकित हो गये थे, तब वे
एकलव्य के पास गये और उन्हें अपने पिता के पास ले जाने के लिए कहा. एकलव्य ने ऐसा
ही किया, तब मुनि ने उनके पिता श्री हिरण्यधनु को कहा कि
एकलव्य में सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनने के सारे गुण हो तो उसका सही मार्गदर्शन करें
और उचित दीक्षा दिलाएं. CLICK HERE TO KNOW रहस्यमयी आलौकिक वृन्दावन का निधिवन ...
एकलव्य का वध क्यों किया श्री कृष्ण ने |
द्रोणाचार्य ने किया
अपमान ( Drona Insulted
Aklavya’s Father ) :
भीलराज हिरण्यधनु जी भी
मुनि की बात से प्रभावित हुए और अपने पुत्र को लेकर उस वक़्त के सबसे महान गुरु
द्रोणाचार्य के पास लेकर गये. उन्होंने द्रोणाचार्य जी को अपना परिचय दिया कि वे
भील राज है और उनका पुत्र धनुर्धर बनने की इच्छा रखता है. ये बात सुनकर गुरु
द्रोणाचार्य जी उनपर बहुत हसें.
हंसने के बाद द्रोणाचार्य
ने कि आप भील है और आपको सिर्फ इतनी धनुर शिक्षा की आवश्यकता होती है कि आप शिकार
कर सके, युद्ध
में लड़ना और शत्रुओं को मारना आपका काम नहीं है. इसके अलावा उन्होंने बताया कि वे
पितामह भीष्म को वचन दे चुके है कि वे सिर्फ कौरव वंश के लोगों को ही शिक्षा देंगे
और किसी को नहीं.
सेवक बना एकलव्य ( Prince Aklavya as a Servant ) :
जब द्रोण ने उनका अपमान
किया तो एकलव्य के पिता वहाँ से चले गये किन्तु एकलव्य वहीँ रुक गया और द्रोण से
प्रार्थना की कि वो उसे अपना सेवक ही बना लें. इस तरह देखें तो गुरु द्रोण के मना
करने के बाद भी एकलव्य ने हार नहीं मानती थी और वो एक सेवक की भाँती अपने गुरु की
सेवा करने और उनके साथ रहने लगा. द्रोणाचार्य ने भी उसके रहने की व्यवस्था कर दी
और उसे एक काम दिया कि जब राजकुमार शिक्षा लेकर चले जाए तो उनके बाण व अस्त्र और
शास्त्र उनके तर्कश में डाल दें. लेकिन एकलव्य छुप छुपकर ये सुनता था कि
द्रोणाचार्य जी राजकुमारों को क्या शिक्षा दे रहे है.
Why Shree Krishna Slaught Murder Aklavya |
एकलव्य को दंड ( Punishment to Aklavya ) :
कुछ दिन इसी तरह चलता रहा
और एक दिन राजकुमार जल्द ही अपना अभ्यास पूरा कर अपने घर पर चले गये, तब एकलव्य को धनुष चलाने का मौक़ा
मिला और उसने लक्ष्य संधान किया जिसे दुर्योधन ने देख लिया और उसकी जानकार आचार्य
द्रोण को दी. आचार्य ने गुस्सा होकर उसे वहाँ से चलने जाने के लिए बोल दिया और
हताश निराश एकलव्य अपने घर की तरफ चल पडा.
मिटटी की प्रतिमा ( Dronacharya Statue of Sand ) :
घर जाते वक़्त एकलव्य ने
सोचा कि वो घर जाकर क्या करेगा, इसलिए वो आदिवासियों के काबिले में रुक गया और उनके सरदार को बताया कि वो
भील राजकुमार है और इसी काबिले में रहकर धनुर्विद्या अभ्यास करने की अनुमति चाहता
है. काबिले के सरदार ने उन्हें प्रसन्नता से इस बात की अनुमति दे दी. तब उन्होंने
मिटटी से गुरु द्रोण की एक प्रतिमा बनायी और अपना अभ्यास आरम्भ किया.
अर्जुन को वचन ( Dronacharya’s Promise to Arjun ) :
धीरे धीरे समय बीतता गया
सभी कुरु राजकुमार और एकलव्य भी बड़ा हो चूका था. साथ ही द्रोण ने कुरु राजकुमारों
के बचपन में एक वचन दिया था कि वे अर्जुन को इस पुरे ब्रह्मांड का सबसे बेहतरीन
धनुर्धर बनाएं. किन्तु जब उन्होंने एकलव्य को धनुष बाण चलाते देखा तो उनकी ये
ग़लतफ़हमी जल्दी ही दूर हो गयी थी. लेकिन वे एकलव्य से कैसे मिले इसके पीछे भी एक कथा
है.
एकलव्य जीवन कथा |
राजकुमारों का कुत्ता ( Dog of Princes ) :
एकलव्य एक दिन अपने
अभ्यास में लीन थे कि तभी वहां एक कुत्ता आया और भौंकने लगा, ऐसे में एकलव्य की एकग्रता बार
बार भंग हो रही थी तो उसने अपना धनुष उठाया और अपने बानों से उसका मुख इस प्रकार
बंद कर दिया कि रक्त की 1 भी बूंद नहीं बही. वो कुत्ता राजकुमारों का था और आश्रम
में द्रोणाचार्य के साथ ही रहता था, जब कुत्ता वापस आश्रम
गया तो द्रोण ये देखकर हैरान थे कि कितनी सफाई से कुत्ते का मुख तीरों से बंद कर
रखा था.
एकलव्य की खोज ( Search for Aklavya ) :
ये देखने कि ये किसने
किया तो द्रोणाचार्य, युधिष्ठिर,
दुर्योधन और अर्जुन के साथ कई राजकुमार व सैनिक एकलव्य के पास
पहुंचे, अपने गुरु द्रोण को देखकर एकलव्य ने उन्हें प्रणाम
किया. इस पर गुरु द्रोण ने गुस्से से उससे पूछा कि क्या तुमने कुत्ते को इतना कष्ट
देकर उसका मुख बंद किया है. तो एकलव्य ने इस बात को स्वीकार किन्तु उसने कहा कि
कुत्ते को कोई कष्ट नही हुआ क्योकि जिस विद्या से उसने ऐसा किया है वो उसने आपसे
ही सीखी है.
अब यहाँ द्रोणाचार्य 2
चीजों से आश्चर्यचकित थे, पहला तो
अपनी मिटटी की मूर्त देखकर और दूसरा एकलव्य की बात सुनकर कि उन्होंने उसे ये
सिखाया था. इसके अलावा वे ये भी जान चुके थे कि वे लड़का एकलव्य है. अब उन्होंने
अर्जुन की तरफ देखा, अर्जुन के चेहरे से उन्हे ऐसा प्रतीत
हुआ कि अर्जुन उनपर हंस रहा है क्योकि आज सभी के सामने अर्जुन से बेहतर और योग्य
धनुर्धर खडा था.
Arjun Prem mein Krishna ne Kya Kya Kiya |
द्रोणाचार्य की
गुरुदक्षिणा ( Aklavya’s Donation
of Guru ) :
अचानक द्रोण को कुछ सुझा
और उन्होंने एकलव्य से गुरुदक्षिणा के लिए कहा और उससे उसके दाए हाथ का अंगूठा ही
मांग लिया, ताकि वो
धनुष चला ही न पाए. एक आज्ञाकारी शिष्य की तरह एकलव्य ने अपना अंगूठा बिना कुछ सोच
विचार किये ही गुरु को समर्पित कर दिया.
बिना अंगूठे के एकलव्य का
साहस ( Courage of Aklavya
Without Thumb ) :
एक बार जरासंध ने यादव
वंश पर आक्रमण किया ( ये घटना विष्णुपुराण और हरिवंश पुराण में लिखी है ), उस वक़्त एकलव्य जरासंध की तरफ ये
युद्ध कर रहे थे और उन्हें अपने सिद्धे हाथ की मात्र चार उँगलियों से ही यादव सेना
में हाहाकार मचवा दी थी और लगभग पूरी सेना को अकेले ही खत्म कर दिया था. ऐसे में
यादव सैनिक श्री कृष्ण के पास पहुंचे, श्री कृष्ण युद्ध भूमि
में आये और एकलव्य की कला को देखकर इतने चकित हो गये कि उन्हें विश्वास भी नहीं
हुआ.
वीरगति को प्राप्त हुए
एकलव्य ( Death of Aklavya ) :
इसी बीच एकलव्य को श्री
कृष्ण से युद्ध करना पडा और उनके हाथों एकलव्य को वीरगति प्राप्त हुई, साथ ही उनके बेटे का वध भीमसेन ने
कर दिया.
Dronacharya ki Shapat |
कृष्ण का अर्जुन प्रेम ( Love of Shree Krishna for Arjun ) :
महाभारत के खत्म होने के
बाद श्री कृष्ण जी ने खुद इस बात को स्वीकार किया था कि वे अर्जुन के सबसे बढे शुभ
चिन्तक है और उनके बीच घनिष्ट मित्रता व प्रेम है. साथ ही उन्होंने स्पष्ट कहा था
कि अर्जुन के प्रेम के लिए मैंने क्या क्या नहीं किया, तुम संसार के सबसे प्रतिभावान व
श्रेष्ठ धनुर्धर कहलाओं, इसलिए मैं द्रोणाचार्य को मरवाया,
कर्ण का तुमसे वध करवाया और ना चाहते हुए भी खुद एकलव्य को वीरगति
दी, ताकि कोई भी तुम्हारे राह की बाधा ना बन पाए.
सीख ( Moral ) :
एकलव्य की कथा से ये सिख
मिलती है कि जीवन में कभी भी हार ना माने और हमेशा आगे बढ़ते रहें, हाँ जीवन में कठिनाइयाँ आएँगी
किन्तु आपकी मेहनत लगन और प्रतिभा ही आपको आगे लेकर जायेगी.
महाभारत रामायण या किसी
अन्य ग्रन्थ से जुडी ऐसी ही अन्य रोचक व लाभदायी कथाओं के बारे में अधिक जानने के
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Kyo Manga Guru Drona ne Aklavya ka Angutha |
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