गुरु गोरखनाथ जी के पूर्ण अवतार बाबा मस्त नाथ जी ने अवतार लिया था. इनका ये अवतार लगभग 1707 ई में हुआ था. और तब ये इसी भौतिक शरीर में लगभग 100 वर्षों तक विद्यमान रहे थे.
गुरु गोरखनाथ जी की तरह ही बाबा मस्त नाथ जी भी शाबर मन्त्र विद्या के माहिर और सिद्ध योगी थे. इनका एक सेवक होता था जिसका नाम था शीलका. वो सेवक तो था लेकिन अभी भक्ति की कमी थी उसमे. वो बाबा मस्तनाथ जी की सेवा में रहता था.
Trikal Darshi Sidh Nath Yogi Baba Mastnath ji ka Kissa
शीलका एक पहलवान था और बहुत बलिष्ठ था. खूब कसरत करना और खाना पीना उसका शोक था. बाबा के आश्रम पर वो सेवा तो करता था लेकिन दुसरे भक्तों पर अपना रॉब झाडा करता था जिससे दुसरे सेवक बहुत परेशान थे.
त्रिकाल दर्शी बाबा मस्तनाथ सब जानते थे लेकिन वो सेवक अच्छा था इसीलिए उसे रस्ते पर लाना चाहते थे ताकि शारीरिक शक्ति का घंमंड उतरे उसका. इसीलिए बाबा ने अपनी माया से एक सामान्य से शरीर वाला युवक तयार किया. और जब शीलका अपने खेतो से लौट रहा था तब उसने शीलका को ललकारा मल युद्ध के लिए. शीलका तो मौके में रहता था और वो तो जल्द ही तयार हो गया की इस हलके से शरीर वाले को वो तुरंत हरा देगा.
उनका युद्ध शरू हुआ और काफी देर तक चलता रहा. युद्ध के दौरान शीलका ने देखा की जितना देर युद्ध हो रहा है सामने वाला युवक उतना ही बलिष्ठ और शक्ति शाली होता जा रहा है. अत एव सामने वाले बलिष्ठ युवक ने उसे हरा दिया. और उसके शारीर पर से सारे कपडे ले लिए. उसके पास कुछ नहीं छोड़ा और चला गया वहाँ से.
त्रिकालदर्शी सिद्ध नाथ योगी बाबा मस्तनाथ जी का चमत्कारी किस्सा
अब नंगा शीलका धीरे -2 छिपता छिपाता किसी तरह घर पहुचा और बहार से
आवाज दी की माँ मुझे मेरे कोई कपडे दो. माँ को आश्चर्य हुआ की नंगा क्यों है. उसकी
माँ वो ही कपडे जो वो बलिष्ठ युवक लेकर गया था अन्दर से ले आई और उसको बोला की तू
खुद ही तो अपने कपडे रख कर गया था फिर ऐसे नंगा पतंगा क्यों घूम रहा है.
ये सुनकर शीलका को शोक लगा और समझ गया के ये सब बाबा मस्तनाथ जी की ही माया थी. वो जान गया की बाबा मस्तनाथ जी एक सिद्ध योगी और त्रिकालदर्शी योगी है. अब उसका घमंड जा चूका था लेकिन एक जिज्ञासा अब भी उसके मन में खटक रही थी. वो सोचा करता था की दिन में तो बाबा सामान्य से दीखते है तो क्या रात में कुछ ख़ास जप, तप, ध्यान अनुष्ठान करते होंगे या बस सोते है या फिर आखिर करते क्या है रात को.
इसीलिए एक दिन शाम को वो बाबा से घर जाने की आज्ञा लेकर चल पड़ा. लेकिन वो घर नहीं गया वो एक पास के पेड़ पर बैठ गया जहां से बाबा का आंगन जहां बाबा रहते थे और दूसरी जगह जहां बाबा का धूना था सपष्ट दिखाई दे रहा था और वो रात का इन्तजार करता रहा.
वो बाबा के धूने और बाबा पर नजर जमाये बैठा रहा ये देखने के लिए की कैसे रात कट ती है एक सिद्ध नाथ योगी की. और रात 12 बजे उसने क्या देखा. घनघोर अँधेरे में पता नहीं कहाँ से बहुत सारे सेवक इकठे हो गये जो चारो और साफ़ सफाई में लग गये. शीलका आँख फाड़े देखता रह गया की इतने आदमी तो दिन में भी नहीं आते अब कहाँ से आ गए और कौन है ये.
साफ़ सफाई के बाद तुरंत जितने भी सिद्ध हुए है वो आसमान से स्पष्ट उतरते हुए उसे दिखाई दिए और उसके बाद जिनकी भी वहां समाधी बनी हुई थी वो भी जाग गये और सिधो के निचे दरी पर बैठ गए.
अब सिद्धो ने तखत के ऊपर अपने से ऊँचे स्थान पर एक आसन लगा दिया. तब उस आसन पर बाबा मस्तनाथ जी आकर बैठ गए. ये सब शीलका अपनी जागृत आँखों से देख कर स्तभ हो चूका था और गर्मी में भी ठिठुर रहा था. लेकिन वो हिम्मत करके सिद्धो की पंचायत और सत्संग को देखता रहा.
जैसे भी ब्रह्ममुहर्त हुआ 84 सिद्ध और सभी देवी देवता भी वहां पधार गए बाबा मस्त नाथ जी की जय जय कार हो रही थी बड़ी जोर जोर से.
अब शीलका की नजर बाबा के धूने पर गयी तो वो और अचंभित हो उठा क्योंकि वहां भी बाबा मस्तनाथ जी ही बैठे हुए थे. मतलब सिद्धो की पंचायत और धूने पर अलग अलग बाबा उपस्थित थे.
शीलका बहुत ज्यादा डर चूका था. और जैसे ही दिन निकलने लगा सारी सभा लुप्त हो गयी, लेकिन धूने पर बाबा अभी दिखाई दे रहे थे, लेकिन शीलका अब डर से बुरी तरह काँप रहा था उनको देख कर, तब बाबा ने स्वयम उसको आवाज लगाईं की शीलका अभी भी कुछ देखना है क्या?
शीलका उनकी आवाज सुनकर डर डर कर निचे उतर कर उनके चरणों में लिपट गया और जैसे ही बाबा ने उसके सिर पर हाथ रखा तत्काल डर की जगह श्रधा भाव उमड़ने लगा.
बाबा के रात कैसे कट ती है ये देख कर अब शीलका पूर्ण रूप से बाबा का भक्त और सेवक हो चूका था और वो अन्दर से बदल चूका था.
Trikal Darshi Sidh Nath Yogi Baba Mastnath ji ka Kissa – त्रिकालदर्शी सिद्ध नाथ योगी बाबा मस्तनाथ जी का चमत्कारी किस्सा
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