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Jyotish Shastar or Bhagya ka Sambandh | ज्योतिष शास्त्र और भाग्य का संबंध

भाग्य वृद्धि के लिए ज्योतिष शास्त्र का महत्व वेदों से है. ज्योतिष शास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जो आपके जीवन के हर रास्तो पर शुभता लाने में समर्थ है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य की कुंडली के नवम भाव को भाग्य भाव माना जाता है. अपने भाग्य की वृद्धि के लिए आपको कुंडली के नवम भाव, भाग्येश और भाग्य राशि पर अधिक विचार करना चाहियें और अपके भाग्य वृद्धि में अवरोध कर रहे ग्रहों को ज्योतिष शास्त्र के उपायों के अनुसार दूर करना चाहियें. आप ज्योतिष शास्त्र को ऐसे समझ सकते हो कि परमात्मा हमारा हाथ पकड़कर हमे भाग्य तक नही पहुंचता बल्कि हमे रास्ता दिखा देता है. उसी तरह ज्योतिष शास्त्र आपके भाग्य वृद्धि के लिए अनेक रास्ते बनता है और आपको अनेक उपाय देता है जिनकी मदद से आप अपने भाग्य में वृद्धि कर सको. 


महाभारत में देवी कुंती श्री कृष्ण से कहती है कि मेरे पुत्र महापराक्रमी और विद्वान् है, किन्तु फिर भी हम अपना जीवन वनों में भटकते हुए व्यतीत कर रहे है. ऐसा इसलिए होता है क्योकि भाग्य कर्मो पर आधारित होता है और उसी के हिसाब से आपको फल देता है. अगर कोई व्यक्ति बहुत विद्वान है किन्तु उसका भाग्य उसके साथ नही है तो ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी सारी विद्या निरर्थक है. जीवन में भाग्य और पुरुषार्थ दोनों का अपना ही अलग महत्व होता है. अगर इतिहास पर नजर डाले तो पता चलता है कि भाग्य से ज्यादा पुरुषार्थ का होना जरूरी है. जबकि भाग्य की कुंजी हमेशा हमारे कर्मो के हाथ में होती है अर्थात जैसा हम कर्म करेंगे वैसा ही हमारा भाग्य होगा.  CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
Jyotish Shastar or Bhagya ka Sambandh
Jyotish Shastar or Bhagya ka Sambandh
 दुनिया में ऐसे बहुत से लोग है जो दिन रात मेहनत करते है किन्तु फिर भी उन्हें अपने पुरे जीवन में सुख नही मिल पाता और उनका जीवन अभावो में व्यतीत हो जाता है. ऐसे लोग पुरुषार्थ करने में तो कोई कमी नही छोड़ रहे फिर भी इन्हें ऐसा जीवन बिताना पड रहा होता है. एक और उदहारण की तरफ भी देखते है जहाँ एक व्यक्ति डॉक्टर, इंजिनियर या मैनेजमेंट की पढाई करके भी नौकरी के लिए भटकता रहता है, वहीं एक अनपढ़ व्यक्ति अपना खुद का कारोबार करके इन्ही लोगो को नौकरी देता है. तो इनमे से कौन सा भाग्यशाली है और किसने पुरुषार्थ को नही किया. एक व्यक्ति जो सारा दिन पत्थर को तोड़ता है, वो व्यक्ति भी तो पुरुषार्थ कर रहा है. कुछ लोग इसका एक बहाना बना देते है और बोल देते है कि उनका वातावरण या उनके हालात उनकी उस स्थिति का दोषी है, कुछ कहते है कि इनमे समझ नही होती और न ही कोई प्रतिभा नही होती, जिसकी मदद से वे अपने जीवन को सुधार सके या जीवन में आगे बढ़ सके. कुछ लोग उनके अशिक्षित होने का बहाना बना देते है, इसी तरह हर व्यक्ति अलग अलग तर्क दे देता है.


ऊपर दिए तर्क सही हो सकते है किन्तु सवाल अब भी वही है कि क्या ये सब उसके हाथ में था? अगर उसके हाथ में था तो उसने एक आमिर व्यक्ति के घर में जन्म क्यों नही लिया? इसका यही अर्थ है कि ये सब भाग्य का खेल है जो हमारे कर्मो पर आधारित होता है. हमारे द्वारा किये गये कर्म ही हमारे भाग्य के निर्माता होते है. किन्तु अब सवाल ये है कि कौन सा कर्म, कैसा कर्म और किस दिशा में कर्म करने से मनुष्य अपने भाग्य का सही निर्माण कर सकता है. आपके इन्ही सब सवालों का जवाब मिलता है ज्योतिष शास्त्र में. श्री मद भगवत गीता में लिखा है कि मनुष्य अपने भाग्य को नही बदल सकता. जो होना है वो होकर ही रहता है. इसी तरह से रामचरित्र मानस में भी लिखा है कि होता वही है जो ईश्वर ने निर्धारित किया है इसलिए हमे व्यर्थ के तर्क नही करने चाहियें. इस बात से ये तो स्पष्ट है कि मनुष्य के जीवन पर भाग्य का ही प्रभाव होता है और जीवन के सुखमय होने के लिए आपके भाग्य का आपके साथ होना जरूरी है और जब आपका भाग्य आपके साथ नही होता तो उस स्थिति में ज्योतिष शास्त्र के उपाय ही आपके जीवन में आपके भाग्य को ला सकते है और आपको खुशियाँ दे सकते है. इसीलिए भाग्य और ज्योतिष शास्त्र का संबंध बहुत ही विशेष होता है. CLICK HERE TO READ MORE SIMILAR POSTS ...
ज्योतिष शास्त्र और भाग्य का संबंध
ज्योतिष शास्त्र और भाग्य का संबंध


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